गूँज दबते स्वरों की - कहानियों के इस शंख में आदमी, समाज और देश के यो अन्तस नाद हैं, जो हमसे टकराते भी हैं, और हमारी आत्मा को जगाते भी हैं। www के इस जमाने में काग़ज़ी सम्बन्धों का चलन बढ़ता-सा लग रहा है। पीढ़ी-दर-पीढ़ी तरक़्क़ी तो है, मगर क्या हमारी ख़ुशियाँ भी समानुपातिक बढ़ रही हैं? चाहे ज़माने की अन्धाधुन्ध दौड़ में पीछे छूटते अपने लोग हों, अहसानों के बोझ को अप्रत्यक्ष रूप से मढ़ने-मढ़वाने का स्वभाव हो, 'गूंज' ऐसे पहलुओं से सरोकार करवाती है। बचपन कोरा काग़ज़ होता है, और समाज अपना मनचाहा रंग चढ़ा देता है। उम्र की दलान पर अकसर कुछ मलाल जाता है। देश, देश-प्रेम, एकता, और सिपाही के बलिदान की बातें, 'गूंज' इन्हीं सब विषयों के इर्द-गिर्द बजती है। साँसों का पहिया अनवरत घूम रहा है। 'गूंज' उस पहिये का विराम है, तय की गयी यात्रा का मन्थन है। साथ ही आगे की यात्रा एक अच्छा इतिहास बने, इसका चिन्तन है। जहाँ 'गूंज' की कहानियों को शब्द दिया है नवीन सिंह ने वहीं कथा अनुरूप चित्रों से बड़ी ख़ूबसूरती से सजाया है—गीता सिंह ने।
"नवीन सिंह -
उत्तर प्रदेश के चन्दौली जनपद के गंगा माँ की गोद नाथूपुर टाण्डा ग्राम में 1986 में जन्म। माध्यमिक शिक्षा गाँव के विद्यालयों, तथा हाईस्कूल-इंटरमीडिएट की पढ़ाई वाराणसी के उदय प्रताप इंटर कॉलेज से। एच.बी.टी.यू. (HBTU), कानपुर से अभियान्रिराकी से स्नातक की शिक्षा। प्राप्तकर पिछले 12 वर्षों से निजी क्षेत्र में कार्यरत। सौभाग्यवश विद्यालय स्तर पर विभिन्न पुरस्कारों सहित एच.बी.टी.यू. (HBTU) कानपुर तथा यू.पी.टी.यू (UPTU), लखनऊ द्वारा शैक्षणिक उत्कृष्टता का स्वर्ण पदक भी प्राप्त हुआ है। हिन्दी और अंग्रेज़ी के साथ-साथ कोरियन का भी ज्ञान। पिछले 5 सालों से दक्षिण कोरिया में रहते हुए ब्लॉग के माध्यम से हिन्दी और कोरियन संस्कृतियों के बीच की कड़ी बनने के लिए प्रयासरत। कहानियाँ और कविताएँ विभिन्न राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं। हिन्दी साहित्य अकादेमी, मुम्बई से सम्मान प्राप्त। हाल ही में प्रकाशित काव्य संग्रह 'सारंगी : गीत मंथन के' को पाठकों का अपार स्नेह प्राप्त।
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