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हँसली बाँक की उपकथा

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"हँसली बाँक की उपकथा - ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित यशस्वी बांग्ला उपन्यासकार ताराशंकर बन्द्योपाध्याय का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उपन्यास है—'हँसली बाँक की उपकथा'। इसमें वीरभूम के राढ़ अंचल की लालमाटी से रँगी गाथा है, जिसके कई रंग और रूप हैं। वहाँ अब तक जो कुछ होता आया है, वह सब दैव प्रेरित ही है। दैव के कोप या दैव की दया में ही उसकी नियति और गति है। ताराशंकर बाबू इस अभिशाप के साक्षी रहे थे और उन्होंने बहुत निकट से इस अन्ध आस्था के प्रति सारे लोक को समर्पित या असहाय होते देखा था। इस आदिकालीन मनोवृत्ति को उसी अंचल की बुढ़िया सुचाँद के द्वारा इस उपन्यास में स्थापित किया गया है। इस महत्त्वपूर्ण उपन्यास को 'गणदेवता' की अगली कथा-श्रृंखला के रूप में देखा जाना चाहिए। "
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9788126301843
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Bharatiya Jnanpith
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Publication Bharatiya Jnanpith
ताराशंकर बंद्योपाध्याय (Tarashankar Bandyopadhyay)

ताराशंकर बंद्योपाध्याय

आपका जन्म वीरभूमि (बंगाल) के अन्तर्गत लाभपुर ग्राम के एक ज़मींदार परिवार में 23 जुलाई, 1898 में हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा के बाद आप सेंट जेवियर्स कॉलेज में प्रविष्ट हुए, किन्तु राजनीतिक हलचल से आपके अध्ययन में विघ्न पड़ा और आप अपने ग्राम में नज़रबन्द कर दिए गए। मुक्ति के बाद भी स्वास्थ्य गिर जाने के कारण आगे अध्ययन जारी न रखा जा सका। 1921 के असहयोग आन्दोलन में फिर कारावास हुआ। जेल से छूटने पर कुछ समय के लिए नौकरी की। तदनन्तर काव्य और नाटक के माध्यम से साहित्य में प्रवेश किया।

उपन्यास-क्षेत्र में आपने अद्वितीय सफलता प्राप्त की। प्रारम्भिक साहित्यिक जीवन में ही आपने अपने उपन्यास ‘हाँसुली बाँकेर उपकथा लिखकर ‘शरद-स्मृति पुरस्कार प्राप्त किया।

1956 में आपको ‘आरोग्य निकेतन’ उपन्यास के लिए साहित्‍य अकादेमी पुरस्‍कारसे इसी उपन्यास पर आपको ‘रवीन्द्र स्मारक पुरस्कारभी प्राप्त हुआ। ‘गणदेवता’ नामक उपन्यास पर ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया।

14 सितम्‍बर, 1971 को कोलकाता में आपका निधन हुआ।

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