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हाथ तो उग ही आते हैं

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"कला प्रिय भारतीय समाज में कहानी सबसे महत्त्वपूर्ण विधा रही है। यहाँ भारतीय महाकाव्यों के भीतर भी कहानियाँ संचरित होती हैं। तब विशुद्ध कहानी की सामाजिक प्रदेयता असन्दिग्ध हो जाती है। श्योराज सिंह बेचैन की कहानियों की भाषा काव्यात्मक होती है। इससे भाषायी प्रभाव और गहरा हो जाता है। जहाँ तक कथावस्तु का प्रश्न है वह भारतीय समाजों के ऐसे अँधेरे कोने से जीवन-चित्रण करते हैं जो पुरातनता के क्रम में नूतन स्वराज सापेक्ष नये सभ्य समाज के स्वप्न और छवियों के बिम्ब निर्मित करते हैं। सहजता, प्रवाहमयता और ग्राह्यता में स्वाभाविक वृद्धि करती है। कथाकार की दृष्टि विकास की राह को प्रकाशित करने वाले दीयों तले छूटते अँधेरों को चिह्नित करती है और जब वे उपेक्षित व अछूते पात्रों की कथाएँ बुनते हैं, तो लगता है साहित्य-संस्कृति का सामासिक मिलाजुला संवर्धन हो रहा है जिसमें मानव चेतना के समुद्र में ज्वार-भाटा उठ रहा है। कविता, समीक्षा, स्तम्भ इत्यादि से हज़ारों पृष्ठ लिखने के उपरान्त लेखक की मानवीय संवेदना और सुधारेच्छु व्यग्रता जो आत्मकथा से कहानी कथा तक विस्तार पायी है, उससे लेखक ने भारतीय कथा-साहित्य की समृद्धि में निराला, अभूतपूर्व युगान्तरकारी योगदान किया है। सृजन-साधना की चरणबद्ध यात्रा ने कथाकार को अर्थपूर्णता और परिपक्वता के मौजूदा मकाम तक पहुँचाया है। हाथ तो उग ही आते हैं कथा संवेदना का ऐसा उत्कृष्ट संग्रह है, जिसमें कला- कल्पना, यथार्थ और स्वप्न का भरापूरा संगम दिखाई देता है। सकारात्मक प्रभावोत्पादकता का अभूतपूर्व संगम दिखाई पड़ता है। हाथ तो उग ही आते हैं की एक-एक कहानी एक-एक उपन्यास की कथा समेटे हुए है। यह देश की सांस्कृतिक बहुलता तथा साहित्यिक विविधता का प्रतिनिधि उदाहरण है, जिसमें लगता है पात्र पृष्ठों से बाहर आकर पाठकों अपके कानों में अपना भोगा हुआ सच बयान कर रहे हैं। ऐसी कथाकृति की अनदेखी नहीं की जा सकती। सार्थक सृजन का स्वतः संज्ञान लेने वाले पारखीजनों के लिए यह स्वागतेय होनी ही चाहिए। तथापि दाग तो चाँद में भी हैं चिह्नित करेंगे तो धो दिये जाएँगे ।"
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9789390678525
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Vani Prakashan
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श्यौराज सिंह बेचैन (Sheoraj Singh Bechain)

"श्योराज सिंह बेचैन : जन्म : 5 जनवरी, 1960; गाँव-नदरोली, बदायूँ, उत्तर प्रदेश। शिक्षा : पीएच. डी., डी.लिट्.। पूर्व अध्येता भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, राष्ट्रपति निवास, शिमला| 'हिन्दी दलित साहित्य का इतिहास' विषय पर शोध| कृतियाँ : आत्मकथा : ज़िन्दगी को ढूँढ़ते हुए, मेरा बचपन मेरे कन्धों पर। अंग्रेज़ी 'तहलका' में माई चाइल्डहुड ऑन माई शोल्डर्स नाम से 35 किश्तें प्रकाशित, जिनका बाद में पंजाबी, मराठी, उर्दू और जर्मन भाषाओं में अनुवाद; कहानी-संग्रह : हाथ तो उग ही आते हैं, भरोसे की बहन, मेरी प्रिय कहानियाँ; कविता-संग्रह : चमार की चाय, क्रौंच हूँ मैं, नयी फ़सल, भोर के अँधेरे में; चिन्तन : दलितेतर वर्ग के उपन्यासों में दलित समस्या और समाधान, हिन्दी दलित पत्रकारिता पर पत्रकार अम्बेडकर का प्रभाव (शोध-ग्रन्थ, लिम्का बुक रिकार्ड-1999 में दर्ज), अम्बेडकर, गांधी और दलित पत्रकारिता, मूकनायक के सौ साल और अस्मिता संघर्ष के सवाल, मीडिया में सामाजिक लोकतन्त्र की तलाश, समकालीन हिन्दी पत्रकारिता में दलित उवाच, दलित- क्रान्ति का साहित्य, मूल खोजो विवाद मिटेगा, अन्याय कोई परम्परा नहीं, साहित्य में दलित- जीवन के प्रश्न, दलित-दखल, सामाजिक न्याय और दलित-साहित्य, स्त्री-विमर्श और पहली दलित शिक्षिका, उत्तर- सदी के कथा-साहित्य में दलित-विमर्श, सम्पादन : प्रधान सम्पादक : बहुरि नहीं आवना, 'हंस' के प्रथम दलित विशेषांक सत्ता-विमर्श और दलित (2004) के अतिथि सम्पादक; विशेष : 'अमर उजाला', 'हिन्दुस्तान', 'राष्ट्रीय सहारा' में विशेष रूप से लेख प्रकाशित। 'हंस', 'कथादेश', 'जनसत्ता', 'नयी धारा’, ‘समकालीन भारतीय साहित्य' आदि पत्र-पत्रिकाओं में कहानियों का प्रकाशन। पुरस्कार : ‘इंटरनेशनल लिटरेरी अवार्ड' - यू.एस.ए. (थर्ड अम्बेडकर इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस, पेरिस), 'सुब्रह्मण्यम भारती सम्मान', 'नेशनल अम्बेडकर अवार्ड' (भा.द.सा.अ., दिल्ली), 'सन्तराम बी.ए. स्मृति सम्मान', 'नयी धारा सम्मान', हिन्दी अकादमी, दिल्ली का ' गद्य विधा सम्मान', 'साहित्य भूषण सम्मान' (उ.प्र. हिन्दी संस्थान), 'बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर सम्मान', महू संस्थान (म.प्र.), 'कबीर सेवा सम्मान', ‘स्वामी अछूतानन्द अति विशिष्ट सम्मान', उ.प्र., 'डॉ. राजेन्द्र प्रसाद अवार्ड', दिल्ली, मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी का कृति केन्द्रित प्रथम पुरस्कार। "

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