हिन्दी भाषा - इस पुस्तक के लिखने में हमने 1901 ईस्वी की मर्दुमशुमारी की रिपोर्टों से, भारत की भाषाओं की जाँच की रिपोर्टों से, नये 'इम्पीरियल गज़ेटियर्स' से, और दो एक और किताबों से मदद ली है। पर इसके लिए हम डॉक्टर ग्रियर्सन के सबसे अधिक ऋणी हैं। इस देश की भाषाओं की जाँच का काम जो गवर्नमेंट ने आपको सौंपा था, वह बहुत कुछ हो चुका है। इस जाँच से कितनी ही नयी-नयी बातें मालूम हुई हैं। उनमें से मुख्य मुख्य बातों का समावेश हमने इस निबन्ध में कर दिया है। अब तक बहुत लोगों का ख़याल था कि हिन्दी की जननी संस्कृत है। यह ठीक नहीं। हिन्दी की उत्पत्ति अपभ्रंश भाषाओं से है और अपभ्रंश भाषाओं की उत्पत्ति प्राकृत से है। प्राकृत अपने पहले की पुरानी बोलचाल की संस्कृत से निकली हैं और परिमार्जित संस्कृत भी (जिसे हम आज कल केवल 'संस्कृत' कहते हैं) किसी पुरानी बोलचाल की संस्कृत से निकली है। आज तक की जाँच से यही सिद्ध हुआ है कि वर्तमान हिन्दी की उत्पत्ति ठेठ संस्कृत से नहीं।
महावीर प्रसाद द्विवेदी - (1864–1938) - हिन्दी के महान साहित्यकार, पत्रकार एवं युगप्रवर्तक थे। उन्होंने हिन्दी साहित्य की अविस्मरणीय सेवा की और अपने युग की साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना को दिशा और दृष्टि प्रदान की। उनके इस अतुलनीय योगदान के कारण आधुनिक हिन्दी साहित्य का दूसरा युग 'द्विवेदी युग' (1900–1920) के नाम से जाना जाता है। उन्होंने सत्रह वर्ष तक हिन्दी की प्रसिद्ध पत्रिका 'सरस्वती' का सम्पादन किया। हिन्दी नवजागरण में उनकी महान भूमिका रही। भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन को गति व दिशा देने में भी उनका उल्लेखनीय योगदान रहा।