Hindi Ghazal Ka Vartman Dashak
हिन्दी ग़ज़ल का वर्तमान दशक -
हिन्दी में ग़ज़ल अपना स्थान बना चुकी है। वह शायरी के दूसरे रूपों के साथ-साथ पंख पसारे आकाश का बहुत सारा विस्तार नाप चुकी है। अब वह किसी एक भाव-भूमि या विषय-क्षेत्र की चीज़ न रहकर आदमी की ज़िन्दगी की मुकम्मल तस्वीर बन चुकी है। व्यक्ति से समाज, और समाज से आगे पूरी दुनिया जहान के स्पन्दन अब उसमें सुने जा सकते हैं। उसमें व्यक्ति-मन के हर्ष-अवसाद के साथ पूरे समाज का यथार्थ अपनी पूरी भयावहता में विद्यमान है।
'हिन्दी ग़ज़ल का वर्तमान दशक' जिसे हिन्दी ग़ज़ल के गम्भीर और समर्पित अध्येता सरदार मुजावर ने सम्पादित किया है, और जिसके तहत वर्तमान दशक के 19 ग़ज़लगो अपनी चुनिन्दा ग़ज़लों के साथ हमसे मुखातिब हुए हिन्दी में अपने ढंग की यह पहली किताब है। जिन स्वनामधन्य ग़ज़ल कहने वालों की चुनिन्दा ग़ज़लें इस संकलन में बानगी के तौर पर हमारे सामने पेश की गयी हैं-उनका सम्बन्ध हमारे समय से है और लगभग सारे के सारे अपने फन में माहिर हैं : –बानगी देखिए।
छोड़ जायेंगी ये आँगन बेटियाँ !
इक पराये घर का हैं धन बेटियाँ!
सामने आयी तो याद आ जायेगा!
हैं बड़े-बूढ़ों का बचपन बेटियाँ!
ख़ुश्क रेगिस्तान-सी है ज़िन्दगी!
और रिमझिम मस्त सावन बेटियाँ!
-कुँवर बेचैन
अपनी तन्हाई को सीने से लगाये रखिए,
गम हज़ार आयें मगर उनको भुलाये रखिए।
मुँह की निकली तो उड़ा लेंगे ज़माने वाले।
अपनी हर बात को होंठों से दबाये रखिए। - सविता चड्ढा
Publication | Vani Prakashan |
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