Publisher:
Vani Prakashan

हिन्दी का लोकवृत

In stock
Only %1 left
SKU
9789350005071
Rating:
0%
As low as ₹665.00 Regular Price ₹700.00
Save 5%

हिन्दी का लोकवृत्त - 1920-1940 - 
किसी भी भाषा के बनने में उन राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक हलचलों का हाथ होता है जो उस भाषा के बनते समय चल रही होती हैं। अमीर ख़ुसरो के समय से चली आ रही हिन्दी के बारे में जब भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने 'हिन्दी नयी चाल में ढली' की घोषणा की थी तो ये इसी सच्चाई को प्रतिध्वनित कर रहे थे। यही नयी चाल' बीसवीं सदी के शुरू होते न होते एक नया मोड़, एक नया अन्दाज़ अपनाने लगी थी। आज, इक्कीसवीं सदी में भी हिन्दी भाषा लगातार विवादों और चर्चा के केन्द्र में है। सभी कुछ उसके रूप से ले कर जिसमें वर्तनी और शब्द भण्डार प्रमुख है उसके आन्तरिक तत्व तक - सवालों के घेरे में हैं। अंग्रेज़ी का हमला अगर उसे 'हिंग्लिश' बनाये दे रहा है तो पुरातनपन्थियों की जकड़बन्दी उसे 'हिंस्कृत' बनाने पर आमादा है। उसमें अब उतनी भी सजीवता नहीं बची जितनी हमें आचार्य द्विवेदी में नज़र आती है। आचार्य द्विवेदी के समय से आगे बढ़ने की बजाय कहा जाय कि वह पीछे ही गयी है। 'हमारी हिन्दी' जैसी कि वह है, अब भी बनने के क्रम में है। अनेक अनसुलझी गुत्थियाँ हैं जिन्हें अनसुलझा छोड़ दिये जाने की वजह से वह अपनी असली शानो-शौक़त हासिल नहीं कर पायी है और अब भी अंग्रेज़ी की 'चेरी' बनी हुई है।

फ्रांचेस्का ऑर्सीनी की पुस्तक की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि यह उस युग की झाँकी दिखाती है - साफ़-साफ़ और ब्योरेवार ढंग से जब ये गुत्थियाँ बनीं। तथाकथित राष्ट्रीयतावाद और 'हिन्दी हिन्दू-हिन्दुस्तान' की भावना ने एक जीवन्त धड़कती हुई भाषा को कैसे स्फटिक मंजूषाओं में क़ैद कर दिया, इसका पता हमें 1920-40 के युग की भाषाई और वैचारिक उथल-पुथल से चलता है, जो इस पुस्तक का विषय है।

कठिन परिश्रम और गहरी अन्तर्दृष्टि से लिखी गयी फ्रांचेस्का की यह किताब हिन्दी के विकास की बुनियादी दृश्यावली को जीवन्तता से प्रस्तुत करते हुए, बिना आँख में उँगली गड़ाये हमें ऐसे बहुत-से सूत्र उपलब्ध कराती है जिन्हें हम अपनी भाषा को फिर से जीवन्त बनाने के लिए काम में ला सकते हैं।
बिना किसी अतिशयोक्ति के यह कहा जा सकता है कि यह पुस्तक अपने विषय का एक अनिवार्य सन्दर्भ-ग्रन्थ है।

ISBN
9789350005071
Publisher:
Vani Prakashan
More Information
Publication Vani Prakashan
फ्रशंचेस्का ऑर्सिनी (Francesca Orsini)

फ्रांचेस्का ऑर्सीनी - फ्रांचेस्का ऑर्सीनी स्कूल ऑफ़ ओरिएंटल एंड अफ्रीका स्तुदिएस, लन्दन विश्वविद्यालय में उत्तर भारतीय साहित्य की रीडर हैं। हाल में उनकी पुस्तक प्रिंट एंड प्लेशर पेर्मनंत ब्लैक से छपी है और उनकी सम्पादित पुस्तक बेफोर दे डिवाइड हिन्दी एंड उर्दू लिटररी कल्चर (बॅटने से पहले हिन्दी और उर्दू का साहित्य) ओरिएंट ब्लैक स्वान से छपकर आयी है। फिलहाल वे उत्तर भारत के पन्द्रहवीं से लेकर सत्तरहवीं साहित्य का इतिहास : बहुभाषिकता के दृष्टिकोण लिख रहीं के हैं।

Write Your Own Review
You're reviewing:हिन्दी का लोकवृत
Your Rating
कॉपीराइट © 2025 वाणी प्रकाशन पुस्तकें। सर्वाधिकार सुरक्षित।

Design & Developed by: https://octagontechs.com/