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हिन्दी नवजागरण : इतिहास गल्प और स्त्री-प्रश्न

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आज के सन्दर्भ में नवजागरण के स्त्री प्रश्नों पर नये सिरे से विचार करने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। सांस्कृतिक इतिहास की दरारों को भरने के लिए, उसकी असंगतियों को दूर करने के लिए स्त्री-लेखन पर पुनर्विचार और शोध करने की ज़रूरत है। इसे हम स्त्रीवादी इतिहास-लेखन कह सकते हैं जो इतिहास का मूल्यांकन जेंडर के नज़रिये से करने का पक्षधर है। दरअसल स्त्रीवादी इतिहास-लेखन समूचे इतिहास को समग्रता में देखने और विश्लेषित करने का प्रयास करता है, जिसमें मुख्यधारा के इतिहास से छूटे हुए, अनजाने में, या जानबूझकर उपेक्षित कर दिये गये वंचितों का इतिहास और उनका लेखन शामिल किया जाता है। यह स्त्री को किसी विशेष सन्दर्भ या किसी सीमा में न बाँधकर, एक रचनाकार और उसके दाय के रूप में देखने का प्रयास है। यह स्त्रियों की रचनाशीलता के सन्दर्भ में लैंगिक (जेंडर) - विभेद को देखने और साथ ही सामाजिक संरचनागत अपेक्षित बदलाव जो घटने चाहिए, उनका दिशा निर्देश करने का भी उद्यम है। स्त्री साहित्येतिहास को उपेक्षित करके कभी भी इतिहास-लेखन को समग्रता में नहीं जाना जा सकता। कुछेक इतिहासकारों को छोड़ दें तो अधिकांश इतिहासकारों ने स्त्रियों के सांस्कृतिक-साहित्यिक दाय को या तो उपेक्षित किया या फुटकर खाते में डाल दिया। आज ज़रूरत इस बात की है कि सामाजिक अवधारणाओं, विचारधाराओं और औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था, समाज-सुधार कार्यक्रमों के पारस्परिक सम्बन्ध को विश्लेषित-व्याख्यायित करने के लिए स्त्री-रचनाशीलता की अब तक उपेक्षित, अवसन्न अवस्था को प्राप्त कड़ियों को ढूँढ़ा और जोड़ा जाये, जिससे साहित्येतिहास अपनी समग्रता में सामने आ सके। स्त्रियाँ लिखकर अपने-आपको बतौर अभिकर्ता (एजेंसी) कैसे स्थापित करती हैं, पूरी सामाजिक संरचना को कैसे चुनौती देती हैं और इस तरह साहित्य और विशिष्ट ज्ञानधारा में दखलन्दाज़ी करती हैं, यह जानने के लिए विभिन्न जीवन्त संरचनाओं के प्रतीकों से स्त्रियों को जोड़कर देखने की जरूरत पड़ती है। प्रस्तुत पुस्तक हिन्दी नवजागरण : इतिहास, गल्प और स्त्री-प्रश्न-नवजागरण के दौर में स्त्री को गम्भीर दृष्टि से देखने और इतिहास का पुनर्लेखन करने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
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9789357751810
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गरिमा श्रीवास्तव (Garima Shrivastava)

गरिमा श्रीवास्तव

गरिमा श्रीवास्तव का जन्म 18 जुलाई, 1970 को नई दिल्ली में हुआ। उन्होंने हिन्दू कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। स्त्रीवादी चिन्तक के रूप में गरिमा अपनी ख़ास पहचान रखती हैं। युद्ध और युद्ध के बाद की स्थितियों को स्त्रीवादी नज़रिये से देखने का उनका प्रयास हिन्दी भाषा-साहित्य की दुनिया में विशिष्ट है।

उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं—‘आउशवित्ज़ : एक प्रेम कथा’, ‘देह ही देश’, ‘चुप्पियाँ और दरारें’, ‘हिन्दी नवजागरण : इतिहास गल्प और स्त्री प्रश्न’, ‘किशोरीलाल गोस्वामी’, ‘लाला श्रीनिवासदास’, ‘हिन्दी उपन्यासों में बौद्धिक विमर्श’, ‘भाषा और भाषा विज्ञान’, ‘ऐ लड़की में नारी चेतना’, ‘आशु अनुवाद’। कुछ सम्पादित पुस्तकें हैं—‘उपन्यास का समाजशास्त्र’, ‘ज़ख़्म, फूल और नमक’, ‘हृदयहारिणी’, ‘लवंगलता’, ‘वामाशिक्षक’, ‘आधुनिक हिन्दी कहानियाँ’, ‘आधुनिक हिन्दी निबन्ध’ और ‘हिन्दी नवजागरण और स्त्री’ शृंखला में सात पुस्तकें—‘महिला मृदुवाणी’, ‘स्त्री समस्या’ ‘हिन्दी की महिला साहित्यकार’, ‘हिन्दी काव्य की कलामयी तारिकाएँ’, ‘स्त्री-दर्पण’, ‘हिन्दी काव्य की कोकिलायें’, ‘स्त्री कवि संग्रह’। उन्होंने कुछ पुस्तकों के अनुवाद भी किए हैं, जिनमें प्रमुख हैं—‘ए वेरी ईज़ी डेथ : सिमोन द बोउवार’, ‘ब्राजीली कहानियाँ’, ‘जारवा भाषा : स्वनिमिक अध्ययन’।

वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के भारतीय भाषा केन्द्र में प्रोफ़ेसर के पद पर कार्यरत हैं।

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