हिन्दी विविध व्यवहारों की भाषा - यह पुस्तक सामान्य पाठ्य पुस्तकों वाली प्रचलित सरलीकृत और पिष्टपेषित पद्धति से किंचित् हटकर लिखी गयी है, जिससे प्रयोजनमूलक हिन्दी और अनुवाद विषय के छात्रों के लिए ही नहीं, सामान्य पाठकों के उपयोग की भी हो सकती है। छात्रों को मौलिकता-प्रदर्शन का अवकाश दिया जाये तथा उनमें आलोचनात्मक दृष्टि का विकास हो, यह विगत ढाई दशकों से एक अध्यापक के रूप में मेरा काम्य रहा है। विडम्बना यह है कि आजीविकोन्मुख तथा तोतारटंतवाली शिक्षा-पद्धति में यह कामना शुभेच्छा मात्र बनकर रह जाती है। फिर भी मैं नकारात्मक सोच और हताशा की कोई ज़रूरत नहीं समझता। हम भले ही नव-स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में मैकाले के सुदृढ़ गढ़ को तोड़ने में अक्षम सिद्ध हुए हों, पर बन्द दिमाग़वाली अपनी क़ैदी नियति के बारे में तो सोच ही सकते हैं। इस तरह से सोचने का भी अपना रचनात्मक महत्त्व है। अगर यह पुस्तक पाठकों को भारत की भाषा-समस्या, भारतीय भाषाओं की स्थिति, हिन्दी के वर्तमान और भविष्य आदि के सम्बन्ध में स्वतन्त्र किन्तु दायित्वपूर्ण ढंग से सोचने की दिशा में अग्रसर कर सके, तो यह इसकी बड़ी सफलता होगी।
"सुवास कुमार -
जन्म : 3 जुलाई, 1948 (बिहार)।
शिक्षा : एम.ए. (स्वर्ण पदक प्राप्त), पीएच. डी.। 1964-65 से लेखन कार्य हिन्दी तथा मैथिली में हिन्दी में पहली कविता 'कल्पना' (हैदराबाद) तथा पहली कहानी 'ज्ञानोदय' (कलकत्ता) में प्रकाशित। सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।
विक्रमशिला कॉलेज-कहलगाँव, बी.बी. कॉलेज आसनसोल, बर्द्धमान विश्वविद्यालय, हैदराबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य। 1996 से 1998 तक दि युनिवर्सिटी ऑव द वेस्ट इंडीज़ के सेंट ऑगस्टीन कैम्पस (ट्रिनिडाड) में हिन्दी के विजिटिंग प्रोफ़ेसर रहे। लौटकर हैदराबाद विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष का कार्य संभाला। फिलहाल वहीं प्रोफ़ेसर।
प्रकाशित कृतियाँ :
यहाँ एक नदी थी, काला सफ़ेद और रंगीन (उपन्यासिकाएँ), अन्य रस तथा अन्य कहानियाँ, देश-विदेशी गुड़िया (कहानी-संग्रह), कविता में आदमी (कविता-संग्रह), मध्यकालीन फैंटेसी सूरदास और चंडीदास का काव्य, आधुनिक हिन्दी कविता : आत्मनिर्वासन और अकेलेपन का सन्दर्भ, आंचलिकता, यथार्थवाद और फणीश्वरनाथ रेणु साहित्यिक समझ, विवेक तथा प्रतिबद्धता (आलोचना), आधुनिक बंगला कविता (अनुवाद), हिन्दी विविध व्यवहारों की भाषा, फणीश्वर नाथ रेणु संचयिता आदि।
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