Publisher:
Bharatiya Jnanpith

होने न होने से परे

In stock
Only %1 left
SKU
9788126317561
Rating:
0%
As low as ₹96.00 Regular Price ₹120.00
Save 20%
"होने न होने से परे - कल्पना, स्वप्न एवं सहज को अप्रासंगिक बनाने की जो निर्द्वन्द्व मुहिम चल रही है, ऐसे उत्तर आधुनिक समय में, अपनी अबोध-आस्था के साथ युवा कवि अमित कल्ला की उपस्थिति विशिष्ट आश्वस्ति से भर देती है। उनके प्रथम काव्य संग्रह 'होने न होने से परे' का 'पाठ' ऐसी ही सर्वथा उस 'अलग सहानुभूति' की माँग करता है जो दुर्लभ हो चली है। इस भावबोध के अनुनाद में, अभिलषित यथार्थ के आनन्द की व्याप्ति 'होने' और 'न होने' के ध्रुवान्त तक है। अमेरिकी कवयित्री एमिली डिकिन्सन के रचना संसार में मृत्यु बारम्बार उपस्थिति दर्ज करती है— काया में और काया के परे (भी)। किन्तु अमित कल्ला की कविताओं में मृत्यु से परे का चैतन्य रहस्यलोक है जहाँ बहुत कुछ कह रहे मौन की असीमित यात्रा है। आख़िर क्या कुछ नहीं है इस कवि-लोक की यात्रा में कितने शब्द, कितनी रेखाएँ, कितने रंग-प्रसंग, कितनी आकुल अमिश्रित वाणी, कितना शून्य का अम्बार, चैतन्यमयी प्रार्थनाओं की पताकाओं-सा निरूपित संचित संवत्सर या फिर सम्पूर्ण सृष्टि का संवाद। यह 'विशिष्ट जीवन्तता' ऊर्जादायी है— किसी फ़िरदौसी बादल-सी शून्य का पीछा करती पारदर्शी काया सुजस, संज्ञान और साधना के सौन्दर्य से सहृदयी संवाद स्थापित करती हुई। भारतीय ज्ञानपीठ के 'नवलेखन पुरस्कार' से सम्मानित कविता-संग्रह। "
ISBN
9788126317561
Publisher:
Bharatiya Jnanpith
More Information
Publication Bharatiya Jnanpith
अमित कल्ला (Amit kalla)

"अमित कल्ला - जन्म: 07 फ़रवरी, 1973, (जयपुर, राजस्थान)। शिक्षा: एम.ए. (आर्ट्स ऐण्ड एस्थेटिक्स), जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नयी दिल्ली। अभिरुचि: कला और साहित्य। देश के विभिन्न शहरों में एकल और सामूहिक चित्र प्रदर्शनियों में प्रतिभागिता। तान्त्रिक कला का गूढ़ अध्ययन। प्राचीन भारतीय कला और संस्कृति के विभिन्न पक्षों की मर्मज्ञता। "

Write Your Own Review
You're reviewing:होने न होने से परे
Your Rating
कॉपीराइट © 2025 वाणी प्रकाशन पुस्तकें। सर्वाधिकार सुरक्षित।

डिज़ाइन और विकास: Octagon Technologies LLP