Huzur-E-Aala
हुज़ूर-ए-आला -
मन में आये सो करते हुए राजासाब का धर्म पालन कार्यक्रम बम्बई में भी जारी रहता। शराब पीते तो ध्यान रखते कि सर्व करने वाला या वाली मुसलमान तो नहीं और अगर मुसलमान होता होती तो बोतल पर, पैग पर गंगाजल छिड़का जाता। यही पुनीत परम्परा भोजन के समय भी निभायी जाती। मटन-चिकन आदि अगर मुसलमान ख़ानसामे ने बनाया या किसी मुसलमान ने सर्व किया है, तो प्लेट पर गंगाजल छिड़कने के बाद ही राजासाब उसे छूते। सुना जाता है, जब राजा विजयसिंग बबली पर जान छिड़कने लगे, तब एक बार बबली के अनुरोध पर और शायद गंगाजल का स्टॉक ख़त्म हो जाने के कारण उन्होंने इस परम्परा का उल्लंघन किया।
गंगाजल का स्टॉक समाप्त होने की जानकारी ग़लत है, क्योंकि नियम यह था कि गंगाजली में से जितना पानी उपयोग के लिए निकाला जाता, उतना ही सादा पानी उसमें डाल दिया जाता। इस प्रकार मिश्रित कहें या होम्योपैथिक डोज कहें, गंगाजल का अंश उस पानी में सदा बना रहता।
यहाँ विषयान्तर बल्कि सपने का विश्लेषण करते हुए अवनि शुक्ला ने लिखा है—और सब तो ठीक है, पर जब भी लोग स्वर्ग का सपना देखते हैं, तो वहाँ उन्हें हीरे-जवाहरात के ढेर क्यों दिखाई देते हैं? सोना और जवाहरात स्वर्ग के किसी फर्नीचर पर चिपके दिखें, दीवारें सोने से मढ़ी हों और उन पर हीरे-मोती से कलात्मक डिज़ाइन बनायी जाय तो उसे सपने की भव्यता से जोड़ा जा सकता है, लेकिन स्वर्ग की ज़मीन पर जवाहरात के ढेर पटके रखना, यह तो स्वप्न की भी फिज़ूलख़र्ची है और स्वर्ग की भी। पर क्या करें, लोग ऐसा ही सपना देखते हैं।
Publication | Bharatiya Jnanpith |
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