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जैन न्याय

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जैन न्याय
भारतीय दर्शन और न्याय के अध्येता इस बात से अच्छी तरह परिचित है कि प्राचीन एवं मध्यकालीन भारत में जैन न्यायशास्त्रियों ने हिन्दू एवं बौद्ध न्यायशास्त्रियों के साथ वादानुवाद में जमकर भाग लिया है। जैन दर्शन, सिद्धान्त एवं न्याय के प्रकाण्ड विद्वान पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री ने अपने अथक परिश्रम से जैन न्याय सम्बन्धी सामग्री एकत्र कर इस कृति में अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों का प्रामाणिक अध्ययन प्रस्तुत किया है।
स्पष्ट है कि जैन दर्शन में तत्त्वज्ञान से सम्बद्ध विषयों का प्रतिपादन होता है जबकि जैन न्याय में मूल रूप से प्रमाणशास्त्र की प्रधानता रहती है। प्रमाण के द्वारा पदार्थ की परीक्षा करना न्याय का विषय है। प्रस्तुत कृति में लेखक ने प्रमाण का स्वरूप, उसके भेद-प्रभेद, विषय, फल और प्रमाणाभास की पूर्वपक्ष और उत्तरपक्ष के साथ विस्तार से चर्चा की है।
पुस्तक की अपनी लम्बी 'पृष्ठभूमि' में विद्वान लेखक ने जैनक्षेत्र के अकलंक, कुन्दकुन्द, उमास्वामी, समन्तभद्र, सिद्धसेन, पात्रकेसरी, विद्यानन्द, हेमचन्द्र, यशोविजय जैसे महान ग्रन्थकारों की न्याय सम्बन्धी मान्यताओं का पर्यवेक्षण किया है।
प्रस्तुत है जैन न्याय के अध्ययनशील छात्रों एवं विद्वानों के लिए पुस्तक का नया संस्करण।

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