जैन सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य
जैन सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य
उत्कृष्ट आत्म-साधना पथ के राही तथा साहित्य के विविध आयामों को स्पर्श कर चिन्तन, मनन और दर्शन की त्रिवेणी प्रवाहित करने वाले मुनि श्री प्रणम्यसागर की यह एक और महत्त्वपूर्ण कृति है-ऐतिहासिक उपन्यास 'जैन सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य'। मुनिश्री ने जैन पुरातत्त्व, शिलालेख, पाषाण - फलक, विविध इतिहास - ग्रन्थ एवं जैन शास्त्रों-पुराणों के आधार पर प्रसिद्ध सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन के विविध पक्षों का रोचक वर्णन किया है। इस कथानक में चन्द्रगुप्त के साथ-साथ चाणक्य का जीवन-दर्शन भी समाहित है। चाणक्य के अभ्युदय तथा चाणक्य द्वारा एक सम्राट् की खोज उपन्यास की दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ तो हैं ही, अन्तिम श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु के सम्पर्क में आकर सम्राट् के हृदय-परिवर्तन और मुक्ति की राह पर चल पड़ने की जिस रोचक कथा को लेखक ने उपन्यास का विषय बनाया है, वह अपने में अद्भुत है।
पुस्तक के परिशिष्ट में एक शब्दकोश भी दिया गया है, ताकि क्लिष्ट सैद्धान्तिक शब्दों का अर्थ पाठक आसानी से समझ सकें।
एक पठनीय कृति।
Publication | Bharatiya Jnanpith |
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