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जैनेन्द्र महावृत्ति

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जैनेन्द्र महावृत्ति

संस्कृत वाङ्मय में अन्य विधाओं की तरह व्याकरण शास्त्र का अपना महत्त्व है। अनेक जैनाचार्यों ने व्याकरण के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण रचनाएँ प्रदान की हैं। आज जो जैनाचार्यों द्वारा लिखे गये व्याकरण ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं, उनमें तीन व्याकरण ग्रन्थों का उल्लेख विशेष रूप से किया जा सकता है, ये हैं- जैनेन्द्र, शाकटायन और सिद्धहैम। इनमें भी पूज्यपाद कृत जैनेन्द्र व्याकरण सबसे प्राचीन माना जाता है।

आचार्य पूज्यपाद-देवनन्दि (5वीं शती) विरचित 'जैनेन्द्र व्याकरण' और उस पर आधारित आचार्य अभयनन्दी (8वीं शती) कृत संस्कृत 'महावृत्ति' का वही गौरवपूर्ण स्थान है जो पाणिनि-व्याकरण में काशिका वृत्ति का है। इस ग्रन्थ का परिमाण 12000 श्लोक प्रमाण है। अभयनन्दी का व्याकरण विषयक ज्ञान केवल जैनेन्द्र तक ही सीमित नहीं था, अपितु पाणिनीय व्याकरण में भी उनकी अवाधित गति थी।

भारतीय ज्ञानपीठ से इस दुर्लभ ग्रन्थ का प्रथम श्रमसाध्य संस्करण सन् 1956 में प्रकाशित हुआ था। इस बीच इसकी आवश्यकता बराबर बनी रही। व्याकरण के साधक विद्वानों और पाठकों की विशेष माँग पर यह नवीन संस्करण आपको समर्पित करते हुए भारतीय ज्ञानपीठ हर्ष का अनुभव करता है।

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