जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश (भाग-5)
जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश शब्दानुक्रमणिका
जैन धर्म दर्शन के प्रखर तत्त्ववेत्ता भु. जिनेन्द्र वर्णी जी द्वारा लिखित 'जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश' भारतीय ज्ञानपीठ से चार भागों में पहली बार सन् 1971-73 में प्रकाशित किया गया था। प्रस्तुत ग्रन्थ उक्त चारों भागों की शब्दानुक्रमणिका (इण्डेक्स) के रूप में पाँचवाँ खण्ड है। वैसे देखा जाए तो कोश अपने-आप में शब्दानुक्रम के रूप में ही होता है, फिर भी इस इण्डेक्स की अपनी विशेष उपयोगिता है। उदाहरण के लिए, 1. कोश में शब्द विशेष के विवेचन में प्रसंगवश अनेक ऐसे शब्दों का भी उल्लेख है, जिन्हें मुख्य शब्द के रूप में नहीं रखा गया, मात्र सन्दर्भ के रूप में ही उनका प्रयोग हुआ है। 2. अनेक ऐसे शब्द भी हैं जिनका प्रयोग प्रसंगतः अनेक बार अनेक सन्दर्भों में हुआ है। साथ ही, 3. ऐसे भी अनेक शब्द हैं जिनकी प्ररूपणाओं के सन्दर्भ एक साथ, एक जगह न होकर ग्रन्थ में यत्र-तत्र फैले हुए हैं। इन सब बातों को ध्यान में रखकर वर्णी जी ने पूरे कोश की शब्दानुक्रमणिका जैसे श्रमसाध्य कार्य को भी अपने जीवन-काल के अन्तिम दिनों में पूरा कर दिया था।
यह शब्दानुक्रमणिका कोश के द्वितीय और उसके बाद के संस्करणों पर आधारित है। प्रथम संस्करण से इसकी पृष्ठ संख्या मेल नहीं खाएगी। शब्दानुक्रम (इण्डेक्स) देखते समय पाठकों को द्वितीय आदि संस्करण को भी ध्यान में रखना होगा।
जैन धर्म-दर्शन के विद्वानों एवं शोधकर्ताओं के लिए विशेष उपयोगी।
Publication | Bharatiya Jnanpith |
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