जलतरंग

In stock
Only %1 left
SKU
9789326354660
Rating:
0%
As low as ₹120.00 Regular Price ₹150.00
Save 20%

जलतरंग -
सम्भवतः यह हिन्दी का पहला ऐसा उपन्यास है जिसके आख्यान के केन्द्र में भारतीय शास्त्रीय संगीत की पूरी परम्परा अपने अनेक वादी, संवादी और विवादी स्वरों के साथ मौजूद है। भारतीय इतिहास के साथ संगीत में आये परिवर्तनों और संगीत के नवोन्मेष के बीच आन्तरिक रिश्तों की पड़ताल भी सन्तोष करते चलते हैं।
उपन्यास के अध्यायों का विभाजन—आलाप, जोड़, विलम्बित द्रुत और झाला में किया गया है। यह विभाजन इसकी संरचना और अध्यायों की गद्य गति को भी एक हद तक तय करता है। उपन्यास का एक बड़ा हिस्सा संगीत और एक बहुत भीतरी तल पर चलते प्रेम के बीच संवादी स्वर पर चलती प्रेम कथा भी है। देवाशीष और स्मृति के बीच यह जुगलबन्दी सिर्फ़ अपने-अपने साज़ पर बजते राग तक सीमित नहीं है, कहीं वह राग से बाहर आकर सम्बन्धों तक अपना विस्तार कर लेती है। वस्तुत: देवाशीष ने जान लिया है कि संगीत कोई गणित नहीं है। राग का सिर्फ़ स्ट्रक्चर समझ लेना ही काफ़ी नहीं है, भाव के पीछे छिपे रस तक पहुँचने के लिए राग में डूबना ज़रूरी है। स्मृति इसे पहले से ही जानती है। संगीत की कई दुर्लभ और अलक्षित जानकारियों के साथ ही उपन्यास का बड़ा हिस्सा वस्तुतः शास्त्रीय संगीत के भीतर उतरने की तैयारी की यात्रा है।
उपन्यास का अन्तिम हिस्सा संगीत और शोर के बीच का विवादी स्वर है। यह शोर एक तरह का नहीं है। यह शोर हमारी विकास की ग़लत अवधारणाओं, शिक्षा और पूरे सामाजिक-राजनीतिक विद्रूप से पैदा हो रहा शोर है क्योंकि एक सुर से दूसरे सुर के बीच जाने का पुल कहीं टूट गया है और इसलिए संगीत की जगह शोर पैदा हो रहा है।
शास्त्रीय संगीत को आख्यान के केन्द्र में रख कर उपन्यास लिखना एक जोख़िम भरा काम है। सन्तोष ने इसे बहुत सलीके से अंजाम दिया है और बिना समझौता किये उसकी रोचकता को बनाये रखा है। अपने पूरे कथा विन्यास में यह उपन्यास विशिष्ट भी है और पठनीय भी। -राजेश जोशी 

ISBN
9789326354660
Write Your Own Review
You're reviewing:जलतरंग
Your Rating
कॉपीराइट © 2025 वाणी प्रकाशन पुस्तकें। सर्वाधिकार सुरक्षित।

डिज़ाइन और विकास: Octagon Technologies LLP