जनतन्त्र एवं संसदीय संवाद
जनतन्त्र की मूल अवधारणा में ही संवाद है, व्यक्ति का व्यक्ति से संवाद, व्यक्ति का समाज से संवाद, व्यवस्था का व्यक्ति और समाज से संवाद, इसी प्रकार तो जनतन्त्र का विकास हुआ है। इसलिए श्रेष्ठ लोकतान्त्रिक व्यवस्थाएँ संवाद की असीमित सम्भावनाओं को तलाशती हैं और इसके लिए रास्ते बनाती हैं। भारत में जाति, क्षेत्र, समाज की अनौपचारिक पंचायतों और चुनी हुई ग्राम पंचायतों से लेकर संसद तक सब व्यवस्थाओं के केन्द्र में संवाद ही है। आदर्श जनतन्त्र में न केवल शासन में आम जन की सीधी हिस्सेदारी होती है बल्कि इस हिस्सेदारी को सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न स्तरों पर निरन्तर संवाद की सुविधा होती है। जनतन्त्र में विभिन्न स्तरों पर संवाद का होना उसे अधिक मज़बूत बनाता है और संसदीय संवाद इसका श्रेष्ठ उदाहरण है। जनप्रतिनिधियों, विधानसभा या संसद के सदस्यों के बीच संवाद, महज़ कुछ व्यक्तियों के बीच होने वाला प्रश्नोत्तर नहीं है बल्कि यह सम्पूर्ण देश का संवाद है।