Jivan Darshan
मनुष्य अपने को दूसरों से श्रेष्ठ एवं बुद्धिमान और दूसरों को अपने से तुच्छ एवं मूर्ख समझ कर उनको अपमानित न करे, अधिकारी तथा धन सम्पन्न होकर भी स्वामित्व का गर्व प्रदर्शित न करे। अल्पज्ञ होकर ज्ञान दुर्वियज्ञ न बने, छोटे मुँह बड़ी बात न करे और बड़प्पन न कर मोह त्याग दे। किसी को यह न सोचना चाहिए कि जो कुछ वह कहता है वह ठीक है। प्रत्येक को यह मानना चाहिये कि भूल उससे भी होती है। किसी की साधारण आलोचना को व्यक्तित्व पर आक्रमण नहीं समझना चाहिए। आलोचना से लाभ लेकर अपने दोषों को सुधारना चाहिए। छोटे-छोटे व्यक्ति का उपहार नहीं करना चाहिए। और आवश्यकता पड़ने पर सत्कार्य की सिद्धि के लिये उसी प्रकार झुक जाना चाहिए। अपने से बड़े या गुणवान धर्मात्मा को देखकर उनका सत्कार करना, बड़ों की आज्ञा को मानना, उनके बोलते समय बीच में नहीं बोलना, बड़ों के पीछे-पीछे चलना, गुरु के आगे न चलकर उनके पीछे चलना, उनके वचन को पालना, इत्यादि विनय की बातें हमेशा याद रखना और उसी के अनुसार चलना तभी विनय कहा जाता है।
Publication | Bharatiya Jnanpith |
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