जो घर फूँके - "आप इस बात को भले न जानें और अच्छा है कि इससे एक हद तक विरत रहें कि आज व्यंग्य रचना के अद्वितीय पूर्वजों के बाद आपके ऊपर हिन्दी के विवेकी पाठकों का ध्यान सबसे ज़्यादा है... मेरी कामना है कि हिन्दी की परम्परा में आप एक ध्रुवतारे की तरह चमकें।"—ज्ञान रंजन "व्यंग्य को हल्के-फुल्के विनोद से अलगाकर एक गम्भीर रचनाकर्म के रूप में स्वीकार करने वाले नये व्यंग्यकारों में ज्ञान चतुर्वेदी का उल्लेखनीय स्थान है... उन्होंने चालू नुस्खों की बजाय भारतीय कथा की समृद्ध परम्परा से अपने व्यंग्य की रचनाविधि को संयुक्त किया है... बेतालकथा की तरह रूपक, दृष्टान्त और फ़ैंटेसी के माध्यम से उन्होंने समकालीन विसंगतियों के यथार्थ को अपेक्षाकृत अधिक व्यापक और प्रभावशील ढंग से प्रतिबिम्बित किया है।"—डॉ. धनंजय वर्मा "आपकी स्फुट रचनाओं में बड़ी ताजगी है और दर्जनों तथाकथित व्यंग्यकारों की कृतियों के विपरीत उनकी अपनी विशिष्टता भी।"—श्रीलाल शुक्ल
"ज्ञान चतुर्वेदी -
2 अगस्त, 1952 को उत्तर प्रदेश के मऊरानीपुर क़स्बे में जन्मे। शिक्षाकाल स्वर्णपदकों के साथ मेडिकल कॉलेज रीवाँ से एम.बी.बी.एस. तथा एम.डी.। हिन्दी व्यंग्य में व्यंग्य-उपन्यासों की विरल परम्परा को बढ़ाने एवं निश्चित दिशा देने का महत्त्वपूर्ण कार्य। प्रकाशित रचनाएँ हैं—'नरकयात्रा', 'बारामासी', 'मरीचिका' (तीन व्यंग्य उपन्यास)। फुटकर रूप में लगभग तीन सौ व्यंग्य रचनाएँ। अब तक पाँच व्यंग्य संग्रह प्रकाशित। ज्ञानोदय और इंडिया टुडे के अपने नियमित व्यंग्य-कॉलमों के ज़रिये हिन्दी जगत के अत्यन्त लोकप्रिय हस्ताक्षर।
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