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Bharatiya Jnanpith

ज्वाला और जल

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ज्वाला और जल - 
'ज्वाला और जल' हरिशंकर परसाई की आरम्भिक रचनाओं में से एक है जिसके केन्द्र में एक ऐसा युवक है जो समाज की निर्ममता के कारण धीरे-धीरे एक अमानवीय अस्तित्व के रूप में परिवर्तित हो जाता है। लेकिन प्रेम और सहानुभूति के सानिध्य में वह एक बार फिर कोमल मानवीय सम्बन्धों की ओर लौटता है। 
उपन्यासिका में फ़्लैश बैक का सटीक उपयोग हुआ है जिससे नायक विनोद के विषय में पाठकों की जिज्ञासा लगातार बनी रहती है। विनोद की कथा मानवीय स्थितियों से जूझते हुए एक अनाथ और आवारा बालक की हृदयस्पर्शी कथा है जिसे हरिशंकर परसाई की कालजयी क़लम ने एक ऐसी ऊँचाई दी है जो उस समय के हिन्दी साहित्य में दुर्लभ थी।

ISBN
9789357752350
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Bharatiya Jnanpith
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Publication Bharatiya Jnanpith
हरिशंकर परसाई (Harishankar Parsai)

"हरिशंकर परसाई जन्म : 22 अगस्त, 1924 ई., जमानी (इटारसी के पास) मध्य प्रदेश। शिक्षा : नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए.। किसी प्रकार की नौकरी का मोह छोड़कर परसाई ने स्वतन्त्र लेखन को ही जीवनचर्या के रूप में चुना। जबलपुर से 'वसुधा' नाम की साहित्यिक मासिक पत्रिका निकाली, घाटे के बावजूद वर्षों तक उसे चलाया, अन्त में परिस्थितियों ने बन्द करने के लिए लाचार कर दिया। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में वर्षों तक नियमित स्तम्भ लिखे- 'नई दुनिया' में 'सुनो भाइ साधो', 'नई कहानियाँ' में 'पाँचवाँ कालम' और ‘उलझी-सुलझी’, ‘कल्पना’ में ‘और अन्त में’ आदि, जिनकी लोकप्रियता के बारे में दो मत नहीं हैं। इसके अतिरिक्त परसाई ने कहानियाँ, उपन्यास एवं निबन्ध भी लिखे हैं। प्रकाशित पुस्तकें : ‘हँसते हैं रोते हैं’, ‘जैसे उनके दिन फिरे’, ‘दो नाक वाले लोग’, ‘रानी नागफनी की कहानी’ (कहानी-संग्रह); ‘तट की खोज’ (उपन्यास); ‘तब की बात और थी’, ‘भूत के पाँव पीछे’, ‘बेईमानी की परत’, ‘पगडंडियों का ज़माना’, ‘सदाचार का ताबीज़’, ‘वैष्णव की फिसलन’, ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’, ‘माटी कहे कुम्हार से’, और ‘अन्त में’, ‘हम इक उम्र से वाक़िफ़ हैं’ आदि (निबन्ध-संग्रह) । से सागर विश्वविद्यालय में मुक्तिबोध पीठ के निदेशक रहे, मध्य प्रदेश शासन के शिखर सम्मान से सम्मानित, 1982 में साहित्य अकादेमी पुरस्कार सम्मानित, जबलपुर विश्वविद्यालय द्वारा डी. लिट्., उपाधि से विभूषित । निधन : 10 अगस्त, 1995 " "

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