Publisher:
Vani Prakashan

कहानी स्वरूप और संवेदना

In stock
Only %1 left
SKU
9788170557395
Rating:
0%
As low as ₹476.00 Regular Price ₹595.00
Save 20%
"प्रस्तुत निबन्ध लेखकों और आलोचकों की समस्याओं और निगाह से नहीं, उस सामान्य पाठक को ध्यान में रखकर लिया गया है, जो आज की कहानी को सम्पूर्ण कहानी के साथ रखकर समझना चाहता है, कहानी पढ़ने-समझने में रुचि रखता है और जिसके पास साहित्य की सामान्य पृष्ठभूमि है। आज की कहानी समझने के लिए आवश्यक ही है कि वह कहानी को उस समग्रता में जाने। बात को अधिक और आवश्यक प्रसंग में स्पष्ट करने के लिए अनेक जगह दुहराया या दूसरी तरह से भी कहा गया है। जगह-जगह यह पुनरावृत्ति इसलिए और भी आवश्यक हो गयी है कि नामों और स्थानों की विस्तृतियों में जाने की चिन्ता किये बिना कहानी की मूलभूत रूपरेखा और प्रवृत्तियों की खोज और विवेचना ही मेरा लक्ष्य रहा है और उसके लिए कहानी के शास्त्राीय पक्ष की अपेक्षा, जीवन तथा साहित्य-प्रभावों और परिस्थितियों वाले पक्ष पर ही मैंने अधिक बल दिया है। भरसक निष्पक्ष और तटस्थ रहने का प्रयास किया है, फिर भी विधा की जिस प्रवृत्ति से अपने को जुड़ा हुआ पाता हूँ, वह मेरा ‘अड्डा’ तो है ही। सारे आसमान का चक्कर लगाने वाला कबूतर लौट-लौटकर तो अपने अड्डे पर ही आता है। यह रचना मेरे लिए भी वह प्रक्रिया रही है जिसे अंग्रेज़ी में ‘वेडिंग थ्रू’ कहते हैंµअर्थात् एक-एक क़दम पानी ठेलते हुए किसी किनारे जा पहुँचने का एक प्रयत्न। और केवल इसी प्रत्याशा में यह प्रयत्न किया गया है कि शायद आज की कहानी को समझने में इसका भी योगदान हो और एक समग्र-कहानी की रूपरेखा के विकास में और समर्थ प्रयास किये जा सकें... हिन्दी कथा-साहित्य के वरिष्ठ हस्ताक्षर राजेन्द्र यादव को जितना उनकी कहानियों और उपन्यासों के लिए जाना जाता है, उतना ही उनके बहस-पसन्द सुकराती स्वभाव के लिए भी। ‘हंस’ का सम्पादन करते हुए उन्होंने उसे साहित्य और समाज के विविध सवालों पर बहस का ऐसा ख़ुला मंच बनाया, जिसका उल्लेखनीय असर हिन्दी के साहित्यिक, बौद्धिक और आम पाठक वर्ग पर देखा जा सकता है। वे हिन्दी साहित्य में दलित और स्त्राी विमर्श के प्रमुख पैरोकारों में हैं। उम्र के छिहत्तरवें पड़ाव पर आ पहुँचे श्री यादव आज भी पूरी तरह सक्रिय हैं; उनका सृजन और वाद-विवाद-संवाद जारी है। "
ISBN
9788170557395
Publisher:
Vani Prakashan
More Information
Publication Vani Prakashan
राजेन्द्र यादव (राजेन्द्र यादव)

राजेन्द्र यादव

जन्म : 28 अगस्त, 1929; आगरा।

शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी), 1951; आगरा विश्वविद्यालय।

प्रकाशित पुस्तकें : ‘देवताओं की मूर्तियाँ’, ‘खेल-खिलौने’, ‘जहाँ लक्ष्मी कैद है’, ‘अभिमन्यु की आत्महत्या’, ‘छोटे-छोटे ताजमहल’, ‘किनारे से किनारे तक’, ‘टूटना’, ‘ढोल और अपने पार’, ‘चौखटे तोड़ते त्रिकोण’, ‘वहाँ तक पहुँचने की दौड़’, ‘अनदेखे अनजाने पुल’, ‘हासिल और अन्य कहानियाँ’, ‘श्रेष्ठ कहानियाँ’, ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘सारा आकाश’, ‘उखड़े हुए लोग’, ‘शह और मात’, ‘एक इंच मुस्कान’ (मन्नू भंडारी के साथ), ‘मंत्र-विद्ध और कुलटा’ (उपन्यास); ‘आवाज तेरी है’ (कविता-संग्रह); ‘कहानी : स्वरूप और संवेदना’, ‘प्रेमचन्द की विरासत’, ‘अठारह उपन्यास’, ‘काँटे की बात’ (बारह खंड), ‘कहानी : अनुभव और अभिव्यक्ति’, ‘उपन्यास : स्वरूप और संवेदना’ (समीक्षा-निबन्ध-विमर्श); ‘वे देवता नहीं हैं’, ‘एक दुनिया : समानान्तर’, ‘कथा जगत की बागी मुस्लिम औरतें’, ‘वक़्त है एक ब्रेक का’, ‘औरत : उत्तरकथा’, ‘पितृसत्ता के नए रूप’, ‘पच्चीस बरस : पच्चीस कहानियाँ’, ‘मुबारक पहला क़दम’ (सम्पादन); ‘औरों के बहाने’ (व्यक्ति-चित्र); ‘मुड़-मुडक़े देखता हूँ’... (आत्मकथा); ‘राजेन्द्र यादव रचनावली’ (15 खंड)।

प्रेमचन्द द्वारा स्थापित कथा-मासिक ‘हंस’ के अगस्त, 1986 से 27 अक्टूबर, 2013 तक सम्पादन। चेख़व, तुर्गनेव, कामू आदि लेखकों की कई कालजयी कृतियों का अनुवाद।

निधन : 28 अक्टूबर, 2013

Write Your Own Review
You're reviewing:कहानी स्वरूप और संवेदना
Your Rating
कॉपीराइट © 2025 वाणी प्रकाशन पुस्तकें। सर्वाधिकार सुरक्षित।

डिज़ाइन और विकास: Octagon Technologies LLP