कामरेड का बक्सा

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कामरेड का बक्सा - 
'कामरेड का बक्सा' शीर्षक इस कहानी संग्रह में कुल जमा पाँच कहानियाँ हैं- 'फीलगुड', 'गुज्जी', 'गुफाएँ', 'कामरेड का बक्सा' और 'कबीरन'। वैसे तो केवल पाँच कहानियों के आधार पर किसी लेखक के बारे में एक निर्णयात्मक स्थिति तक पहुँचना जोखिम भरा काम है फिर भी इन कहानियों से गुज़रते हुए यह सुखद अहसास ज़रूर होता है कि सूरज बड़त्या में भविष्य का एक सार्थक एवं बड़ा कहानीकार होने की अनन्त सम्भावनाएँ हैं। इन कहानियों में क़िस्सागोई की शैली और कहन की विशिष्टता ने पठनीयता के गुण को इस प्रकार से निखारा है कि कहानी को एक साँस में चट कर जाने की उत्सुकता पैदा होती है। दलित समझ से लिखी गयी इन कहानियों में विमर्श सतह पर उतरता नहीं दिखाई देता बल्कि यही कि विचारधारा दृष्टि का उन्मेष करती है। कहानीकार की इस संक्षिप्त कहानी - यात्रा में विकास प्रक्रिया का संकेत मिलता है जो उत्तरोत्तर निखरती गयी है।
संग्रह की अन्तिम कहानी 'फीलगुड' सम्भवतः लेखक की भी पहली कहानी है जो जाति छिपाने की हीन-ग्रन्थि को केन्द्र में रखकर लिखी गयी है। घृणा की सीमा तक फैली हुई अस्पृश्यता की समस्या दलित समुदाय की सबसे अपमानजनक समस्या है जिसका सामना पढ़े-लिखे दलितों को क़दम-क़दम पर करना पड़ता है। 'सरनेम' जानने की सवर्ण जिज्ञासा ही जाति छिपाने की प्रेरणा देती है। 'गुज्जी' कहानी में गुज्जी के ब्योरेवार वर्णन में नये दलित बिम्बों एवं प्रतीकों का प्रयोग कहानी की सृजनात्मकता में बाधक नहीं है। ऐसे दृश्य पहले फ्लैप का शेष अभिजन साहित्य में भले वर्जित रहे हों पर 'सूअर भात' देने के विरले अवसर तो दलित समाज के जीवनोत्सव हुआ करते थे। यहीं अभिजन साहित्य के सौन्दर्यशास्त्र से दलित साहित्य के सौन्दर्यशास्त्र का अन्तर भी स्पष्ट हो जाता है।
अन्य तीनों कहानियाँ अपनी बनावट और बुनावट की दृष्टि से बेहतर कहानियाँ हैं जिनमें 'कामरेड का बक्सा' को 'कामरेड का कोट' और ‘लाल क़िले के बाज' के साथ रखकर भी पढ़ा जा सकता है। पर इसकी विशिष्टता यह है कि इसमें 'मार्क्स' और अम्बेडकर के विचारों के द्वन्द्वात्मक सम्बन्धों को विरोध और सामंजस्य की युगपत प्रक्रिया में रेखांकित करने का प्रयास किया गया है। वर्ण बनाम वर्ग के अन्तर्विरोध के बावजूद 'अपने लोगों के लिए' बेचैनी दोनों को व्यथित करती है। ‘गुफाएँ' कहानी दलित समुदाय के अपने अन्तर्विरोधों और उपजातियों की आन्तरिक समस्याओं से जूझती कहानी है। अन्तर्विरोधों से मुक्त होने की छटपटाहट और लेखक की बेचैनी को साफ़ देखा जा सकता है। 'कबीरन' कहानी अद्भुत लेकिन दलित साहित्य को नया आयाम देती हुई उसके फलक को व्यापक करती है। इसमें हिजड़े समुदाय के दर्द और उनके साथ होते सामाजिक अन्याय के घने और गहरे बिम्ब हैं। निश्चित तौर पर सूरज बड़त्या ने एक युवा कहानीकार के रूप में अपनी अलग पहचान बना ली है, इसमें सन्देह नहीं। -चौथीराम यादव

ISBN
9789350726129
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