Publisher:
Vani Prakashan

कामसूत्र से 'कामसूत्र' तक : आधुनिक भारत में सेक्सुअलिटी के सरोकार

In stock
Only %1 left
SKU
Kamsootra Se 'Kamsootra' Tak Adhunik Bharat Mein Sexuality Ke
Rating:
0%
As low as ₹285.00 Regular Price ₹300.00
Save 5%

कामसूत्र से 'कामसूत्र' तक - आधुनिक भारत में सेक्सुअलिटी के सरोकार - 
इस किताब में पहली बार आधुनिक भारत की सेक्शुअलिटी का अध्ययन किया गया है। इसके पृष्ठों पर पाठकों को वामपंथी क्रान्तिकारी आन्दोलन में यौन दमन के ख़िलाफ़ जूझती स्त्रियाँ दिखेंगी, यौन मुक्ति का झंडा उठाने वाले स्त्री पात्रों से मुलाक़ात होगी और भारतीय सेक्शुअलिटी की स्वातन्त्र्योत्तर राजनीति पर चर्चा मिलेगी। इन पृष्ठों पर वैवाहिक सम्बन्धों में पुरुष की यौन हिंसा के ख़िलाफ़ संघर्ष करती स्त्रियों से साक्षात्कार होने के साथ-साथ मीडिया समर्थित यौन क्रान्ति का खाका भी दिखाई देगा।
आम तौर पर कहा जाता है कि भारतीय समाज में काम - यौन विषयक मामलों पर चुप्पी छायी रहती है, और हमारी सेक्शुअलिटी के विकास की कहानी वात्स्यायन रचित 'कामसूत्र' से शुरू होकर 'कामसूत्र' नामक कंडोम पर ख़त्म हो जाती है। माना जाता है कि इन दोनों ‘कामसूत्रों' के बीच एक लम्बा अन्धकारमय अन्तराल है। सवाल यह है कि क्या इस प्रचलित धारणा के विपरीत हमारी सेक्शुअलिटी यानी भारतीय सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में रची-बनी यौन-व्यवस्था का एक वैकल्पिक इतिहास सम्भव है? इस संकलन के निबन्ध इस बात के सबूत हैं कि भारतीय बुद्धिजीवियों का एक उभरता हिस्सा इस सवाल का जवाब 'हाँ' में देने को तैयार है।
एक अवधारणा के तौर पर सेक्शुअलिटी सम्बन्धी अध्ययनों की शुरूआत पश्चिम में हुई थी। वहाँ फ्रॉयड से लेकर फूको तक सेक्शुअलिटी के विद्वानों की समृद्ध परम्परा है। इस संकलन की रचनाएँ भारतीय सन्दर्भ में पहली बार सेक्शुअलिटी को जीववैज्ञानिक विमर्श के दायरे से निकाल कर वैध-अवैध सेक्शुअल सम्बन्धों की जमीन पर लाती है; 'सेक्स' को एक विषय के रूप में उत्पादित, रचित, वितरित और नियन्त्रित करने वाली संस्थाओं, आचरण संहिताओं, विमर्शी और निरूपण के रूपों की जाँच-पड़ताल करती हैं। सेक्शुअलिटी के सवाल पर किसी भी तरह के सुरक्षित विमर्श से परे जा कर ये रचनाएँ ग़ैर-मानकीय यौनिकताओं की दुनिया में भी झाँकती हैं ताकि इतरलैंगिक मान्यताओं पर सवालिया निशान लगाये जा सकें। इन विद्वानों की मान्यता है कि आधुनिक भारत में कामनाओं और हिंसा की सेक्शुअल राजनीति की समझ बनाये बिना भारतीय सेक्शुअलिटी के साथ एक विषय के रूप में न्याय नहीं किया जा सकता।
भारतीय सेक्शुअलिटी की रूपरेखा बनाने वाले इन निबन्धों में उत्तर भारतीय ग्रामीण समाज से लेकर दिल्ली के महानगरीय परिदृश्य तक सेक्शुअलिटी के मुद्दों का सन्धान करते हुए सेक्शुअलिटी के विमर्श को दोनों सिरों पर खोल दिया गया है। प्रति-विचार के पैंतरे से भारतीय सेक्शुअलिटी के विमर्श को बचाते हुए ये निबन्ध किसी ख़ास सरोकार के शिकंजे में नहीं फँसते। बजाय इसके वे यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि पितृसत्ता की हमारी समझ सेक्शुअलिटी के आईने का इस्तेमाल करने से समृद्ध होती है या नहीं।

अन्तिम पृष्ठ आवरण - 
सेक्शुअलिटी समाज की एक निर्धारक शक्ति है। इस पुस्तक के विद्वत्तापूर्ण निबन्ध उस शक्ति का कोई सटीक चित्रण करने के बजाय सेक्शुअलिटी से सम्बन्धित कुछ विशिष्ट मुक़ामों पर नज़र डालते हैं। इस प्रक्रिया में सेक्सुअलिटी कभी तो स्कैंडल की तरह उभरती है, कभी सत्ता के औजार की तरह, कभी हिंसा के एक रूप के तौर पर और कभी आज़ादी के निशानों की तरह सामने आती है। इन निबन्धों में कोशिश की गई है कि सेक्शुअलिटी से सम्बन्धित मुद्दों और उन्हें आपस में जोड़ने वाले सूत्रों को उभारा जाये, ताकि समाज द्वारा अपनायी जाने वाली चुप्पी प्रश्नांकित करते हुए सेक्शुअलिटी के बनते हुए भारतीय खाके की रूपरेखा स्पष्ट हो सके।

ISBN
Kamsootra Se 'Kamsootra' Tak Adhunik Bharat Mein Sexuality Ke
Publisher:
Vani Prakashan

More Information

More Information
Publication Vani Prakashan

समीक्षाएँ

Write Your Own Review
You're reviewing:कामसूत्र से 'कामसूत्र' तक : आधुनिक भारत में सेक्सुअलिटी के सरोकार
Your Rating
कॉपीराइट © 2025 वाणी प्रकाशन पुस्तकें। सर्वाधिकार सुरक्षित।

Design & Developed by: https://octagontechs.com/