कनुप्रिया - राधा-कृष्ण का प्रणय-प्रसंग और भारती की लेखनी। यह सुयोग ही इस बात का स्वयंसिद्ध प्रमाण है कि 'कनुप्रिया' का आविर्भाव साहित्य-लोक की एक विशिष्ट घटना है। 'कनुप्रिया' में पूर्वराग, मंजरी-परिणय और सृष्टि-संकल्प के अन्तर्गत जहाँ बहुमुखी प्रणय के विविध आयाम प्राणों की धारा में से प्रस्फुटित होकर प्रकृति के प्रतीकों में सार्थक तादात्म्य प्राप्त करते हैं, वहाँ इतिहास और समापन के अध्याय राधा के प्रणय को एक सर्वथा नयी दृष्टि और नया परिप्रेक्ष्य देते हैं। राधा आज उसी अशोक वृक्ष के नीचे उन्हीं मंजरियों से अपनी क्वाँरी माँग भरे खड़ी है इस प्रतीक्षा में कि जब महाभारत की अवसान-वेला में अपनी अठारह अक्षौहिणी सेना के विनाश के बाद निरीह, एकाकी और आकुल कृष्ण किसी भूले हुए आँचल की छाया में विश्राम पाने लौटेंगे तो वह उन्हें अपने वक्ष में शिशु-सा लपेट लेगी।
"धर्मवीर भारती
बहुचर्चित लेखक एवं सम्पादक डॉ. धर्मवीर भारती 25 दिसम्बर, 1926 को इलाहाबाद में जनमे और वहीं शिक्षा प्राप्त कर इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य करने लगे । इसी दौरान कई पत्रिकाओं से भी जुड़े। अन्त में ‘धर्मयुग' के सम्पादक के रूप में गम्भीर पत्रकारिता का एक मानक निर्धारित किया ।
डॉ. धर्मवीर भारती बहुमुखी प्रतिभा के लेखक थे। कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबन्ध, आलोचना, अनुवाद, रिपोर्ताज आदि विधाओं को उनकी लेखनी से बहुत-कुछ मिला है। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं : साँस की कलम से, मेरी वाणी गैरिक वसना, कनुप्रिया, सात गीत-वर्ष, ठण्डा लोहा, सपना अभी भी, सूरज का सातवाँ घोड़ा, बन्द गली का आख़िरी मकान, पश्यन्ती, कहनी अनकहनी, शब्दिता, अन्धा युग, मानव-मूल्य और साहित्य और गुनाहों का देवता ।
भारती जी 'पद्मश्री' की उपाधि के साथ ही ‘व्यास सम्मान’ एवं अन्य कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से अलंकृत हुए।
4 सितम्बर, 1997 को मुम्बई में देहावसान ।"