कारोबार
कारोबार
'कारोबार' चर्चित कहानीकार ओमा शर्मा की आठ कहानियों का महत्वपूर्ण संग्रह है। ओमा शमों ने जोवन में जगह-ब-जगह उपस्थित कथा को शब्दों में उतारने की रेखांकित करने योग्य सामर्थ्य विकसित की है। वे आधुनिकता और प्रगतिशीलता का श्रम पालते प्रसंगों को रचना की ईमानदार रौशनी में देखते हैं। यही कारण है कि उनकी कहानियाँ शब्द-दर-शब्द पाठक को अनुभव के एक नामालूम जगत में ले जाती हैं। ओमा शर्मा संवेदना के सन्तुलित माधनों का उपयोग करते हैं। रचनाकार का अतिरिक्त आग्रह या मोह 'कारोबार' संग्रह की कहानियों में नहीं दिखता। 'कारोबार' का मुखबिर पठान जिन्दगी की सच्याइयों के सामने समर्पण करता है और उसकी ठंडी मानसिकता पाठक को विचलित करती है। 'वास्ता रिश्तों के उपयोगितावादी (और विवश!) आयाम का वृत्तान्त है। 'महत्तम समापवर्त्य' कुलीनतावादी कोलाहल के बीच कला के अवरुद्ध स्वर की शिनाख्त है। ओमा ने 'सौन्दर्यबोध' को अद्भुत व्यंग्य के साथ रचा है। 'ग्लोबलाइजेशन' में लेखक ने शिल्पगत प्रयोग किया है और सूचनाओं में कहानी तलाशी है। 'घोड़े' संग्रह की महत्त्वाकांक्षी लम्बी कहानी है। औरों की दौड़ में घोड़ा बनने की नियति का दिलचस्प और टीस भरा वर्णन है 'घोड़े। वर्णन और विवरण में सहसा पाठक को पलायन, ऊब, विस्थापन और आत्मरुदन के बिम्ब दिखने लगते हैं। 'कुतरवा' कहानी में ओमा शर्मा की व्यंजना क्षमता का एक प्रफुल्ल पक्ष उद्घाटित होता है। कौन किसका कुत्ता है. इसका निर्णय लेखक पाठक पर छोड़ देता है। 'बांग्लादेश' समकालीन जीवन का परेशान करता यथार्थ है। ओमा शर्मा की भाषा समर्थ और रचनात्मक है, जैसे, 'बुजदिल होना एक सामाजिक अच्छाई है। या 'उसकी आँखें किसी घात लगाये चीते-सी नापाक थीं।' अनुभवों का वैविध्य, शिल्प का सधाव और रचना का समग्र प्रभाव 'कारोबार' की रचनाओं को उत्कृष्ट सिद्ध करता है।
- सुशील सिद्धार्थ
Publication | Bharatiya Jnanpith |
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