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कारवाँ आगे बढ़े

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"कारवाँ आगे बढ़े - राष्ट्रीय चरित्र पर ऐसी पुस्तक सम्भवतः देश की किसी भी भाषा के पास नहीं है। नयी पीढ़ी के हाथों में पहुँचकर तो यह मशाल का काम कर सकती है। इन अछूते प्रेरक निबन्धों में प्रचारक की हुंकार नहीं, सन्मित्र की पुचकार है जो पाठक का कन्धा थपथपाकर उसे चिन्तन की राह पर ले जाती है। वह सड़कों पर, स्टेशनों पर, दफ़्तरों में, घरों में, कहें पूरे राष्ट्रीय जीवन में कुरूपता देखता है और संकल्प करता है मैं इस कुरूपता से बचूँगा और दूसरे नागरिकों को भी बचाऊँगा। प्रगति पथ पर बढ़ने के लिए नागरिकों का कारवाँ तैयार हो जाता है। पुस्तक का हर पन्ना उस कारवाँ के लिए हरी झण्डी है। "
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9788126314737
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Bharatiya Jnanpith
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Publication Bharatiya Jnanpith
कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर (Kanhaiya Lal Mishr Prabhakar )

"कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' - सहारनपुर ज़िले के देवबन्द क़स्बे में 29 मई, 1906 को जनमे प्रभाकर जी राष्ट्र-चिन्तक तो थे ही, हिन्दी के महान गद्य-लेखक और पत्रकार भी थे। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं—'ज़िन्दगी मुसकरायी', 'माटी हो गयी सोना', 'महके आँगन चहके द्वार', 'आकाश के तारे धरती के फूल', 'दीप जले शंख बजे', 'क्षण बोले कण मुसकाये', 'बाजे पायलिया के घुँघरू', 'ज़िन्दगी लहलहायी' और 'कारवाँ आगे बढ़े'। सभी कृतियाँ ज्ञानपीठ से प्रकाशित। "

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