कथा एक प्रान्तर की
कथा एक प्रान्तर की
पोट्टेक्काट का जन्म कालीकट में हुआ। कालीकट नाम तो बाद में पड़ा जब वहाँ उद्योग-धन्धों का विस्तार होना प्रारम्भ हुआ। इसका पुराना नाम अतिराणिप्पाटं था। पोट्टेक्काट ने 'कथा एक प्रान्तर की' में इसी अतिराणिप्पाटं की अन्तरात्मा की कथा इस उपन्यास में वर्णित की है। इसीलिए 'ओरु देशत्तिन्ते कथा' का हिन्दी रूप 'एक गाँव की कहानी' भी कर दिया जाता है, यद्यपि ओरु (एक) देशत्तिन्ते में देश शब्द न प्रदेश के अर्थ में है, न पूरे गाँव के अर्थ में। यह गाँव के छोर पर बसी बस्ती की कथा है-वहाँ के परिवर्तन, परिवेश की। वहाँ के निवासियों की जिन्होंने जीवन के अनेक उतार-चढ़ाव देखे; अनेक प्रकार के सुख-दुःख सहे, अनेक प्रकार के कार्यकलाप और पारस्परिक व्यवहार से उत्पन्न क्रिया-प्रतिक्रियाओं के, मानवीय उद्वेगों के जो भोक्ता और दृष्टा रहे। इन पात्रों में स्वयं पोट्टेक्काट हैं कथा-नायक श्रीधरन के रूप में। गाँव के सदाचारी सात्विक निश्छल कृष्णन-मास्टर पोट्टेक्काट के पिता के ही प्रतिबिम्ब हैं। शेष पात्र भिन्न-भिन्न नामों के अन्तर्गत बस्ती के ही जीते-जागते व्यक्ति हैं। जिनके बीच पोट्टेक्काट के बचपन, लड़कपन और तरुणाई के दिन बीते । छोटा-सा प्रान्तर, एक पूरा विश्व है। एक-एक पात्र पूरा इतिहास है, एक-एक का जीवन-वृत्त एक-एक उपन्यास है। पचासों पात्र हैं, सैकड़ों घटनाएँ हैं-छोटी-छोटी घटनाएँ, चर्चाएँ, अन्तराल जो जीवन के तानों- बानों को बुनते चलते हैं।
Publication | Bharatiya Jnanpith |
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