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कौन हूँ मैं

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कौन हूँ मैं' जोशी की ऐसी महत्त्वाकांक्षी - औपन्यासिक कृति है जिसे वह प्रकाशित रूप में नहीं देख सके। अपने आखिरी दिनों में वे इस उपन्यास को पूरा करने में लगे थे ।"

लाजवाब किस्सागोई के साथ अचूक व्यंग्यात्मकता जोशी जी के लेखन की विशेषता रही है । उनके इस नवीनतम उपन्यास में किस्सागोई का जादू तो है, पर जिसे कहते हैं व्यंग्यात्मकता वह दुनिया के पेच-ओ-खम में उलझे उपन्यास के नायक के जीवन में इस तरह आती है कि सिर्फ हँसने से काम नहीं चलता। यहाँ एक विराट विडम्बना से साक्षात्कार होता है, जो नायक को जिन्दगी के ऐसे मोड़ पर ला खड़ा करती है जहाँ उसे पूरी दुनिया मृत मान चुकी है और उसे अपने जीवित होने को सिद्ध करने के लिए अन्ततः न्यायालय की शरण लेनी पड़ती है ।

ब्रिटिशकालीन बंगाल में अवस्थित भवाल राजपरिवार के मेजोकुमार की अविश्वसनीय कथा, मृत्यु के बाद जिसका शव चिता से गायब हो गया और बरसों बाद जब एक साधु ने खुद के मेजोकुमार होने का दावा किया तब सम्पत्ति और सम्बन्धों के ताने-बाने में उलझी एक ऐसी गाथा का उद्घाटन हुआ जिसने पूरे देश को रोमांचित कर दिया।

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मनोहर श्याम जोशी (Manohar Shyam Joshi )

मनोहर श्याम जोशी 

जन्म : 9 अगस्त, 1933 को अजमेर में।

लखनऊ विश्वविद्यालय के विज्ञान स्नातक मनोहर श्याम जोशी ‘कल के वैज्ञानिक’ की उपाधि पाने के बावज़ूद रोज़ी-रोटी की ख़ातिर छात्र-जीवन से ही लेखक और पत्रकार बन गए। अमृतलाल नागर और अज्ञेय—इन दो आचार्यों का आशीर्वाद उन्हें प्राप्त हुआ। स्कूल मास्टरी, क्लर्की और बेरोज़गारी के अनुभव बटोरने के बाद 21 वर्ष की उम्र से वह पूरी तरह मसिजीवी बन गए।

प्रेस, रेडियो, टी.वी. वृत्तचित्र, फ़िल्म, विज्ञापन-सम्प्रेषण का ऐसा कोई माध्यम नहीं जिसके लिए उन्होंने सफलतापूर्वक लेखन-कार्य न किया हो। खेल-कूद से लेकर दर्शनशास्त्र तक ऐसा कोई विषय नहीं जिस पर उन्होंने क़लम न उठाई हो। आलसीपन और आत्मसंशय उन्हें रचनाएँ पूरी कर डालने और छपवाने से हमेशा रोकता रहा है। पहली कहानी तब छपी जब वह अठारह वर्ष के थे लेकिन पहली बड़ी साहित्यिक कृति तब प्रकाशित करवाई जब सैंतालीस वर्ष के होने को आए।

केन्द्रीय सूचना सेवा और टाइम्स ऑफ़ इंडिया समूह से होते हुए सन् ’67 में हिन्दुस्तान टाइम्स प्रकाशन में ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान के सम्पादक’ बने और वहीं एक अंग्रेज़ी साप्ताहिक का भी सम्पादन किया। टेलीविज़न धारावाहिक ‘हम लोग’ लिखने के लिए सन् ’84 में सम्पादक की कुर्सी छोड़ दी और तब से आजीवन स्वतंत्र लेखन करते रहे।

प्रकाशित प्रमुख कृतियाँ : ‘कुरु-कुरु स्वाहा’, ‘कसप’, ‘हरिया हरक्यूलीज की हैरानी’, ‘हमज़ाद’, ‘क्याप’, ‘ट-टा प्रोफ़ेसर’ (उपन्यास); ‘नेताजी कहिन’ (व्यंग्य); ‘बातों-बातों में’ (साक्षात्कार); ‘एक दुर्लभ व्यक्तित्व’, ‘कैसे क़िस्सागो’, ‘मन्दिर घाट की पैड़ियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘आज का समाज’ (निबन्ध); ‘पटकथा-लेखन : एक परिचय’ (सिनेमा)। टेलीविज़न धारावाहिक : ‘हम लोग’, ‘बुनियाद’, ‘मुंगेरीलाल के हसीन सपने’, ‘कक्काजी कहिन’, ‘हमराही’, ‘ज़मीन-आसमान’। फ़िल्म : ‘भ्रष्टाचार’, ‘अप्पू राजा’ और ‘निर्माणाधीन ज़मीन’।

सम्मान : उपन्यास ‘क्याप’ के लिए वर्ष 2005 के ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ सहित ‘शलाका सम्मान’ (1986-87); ‘शिखर सम्मान’ (अट्टहास, 1990); ‘चकल्लस पुरस्कार’ (1992); ‘व्यंग्यश्री सम्मान’ (2000) आदि।

निधन : 30 मार्च, 2006

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