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कवि केदारनाथ सिंह

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मेरी कविता का पाठक कहाँ और कौन है, इसे मैं ठीक-ठीक नहीं जानता। जानने का कोई सीधा उपाय भी नहीं है मेरे पास एक दिलचस्प किंवदन्ती की तरह मुझे सिर्फ़ इतना मालूम है कि हिन्दी-भाषी समाज में वह जो एक छोटी-सी दुनिया है, जिसे ख़ूब पढ़े-लिखे लोगों की दुनिया कहते हैं, कहीं वहीं होना चाहिए आज की कविता के पाठक को। मेरे लिए वह लगभग अज्ञात वयकुलशील है। उसकी यह अज्ञात वयकुलशीलता मुझे कई बार परेशान करती है, पर वह जैसे किसी जादुई छिद्र से चुपचाप मेरे समस्त रचना-कर्म को देखती भी रहती है। यह अदृश्य रूप से देखना मेरी पूरी रचना की भाषा और उसके 'टोन' को दूर तक प्रभावित करता है। सच्चाई यह है कि आज पाठक यदि कहीं है तो वह पूरे काव्य परिदृश्य के हाशिये पर है, केन्द्र में नहीं और कुल मिलाकर वहाँ भी उसकी स्थिति सन्देहों से परे नहीं है। पाठक की इस सन्दिग्ध स्थिति को एक ठोस मानवीय सम्भावना में बदला जाये-मेरे रचना-कर्म का यह एक ख़ास मुद्दा है। एक तरह से देखा जाये तो पूरी भारतीय कविता पाठक या सहृदय के साथ एक गहरे स्तर पर जुड़ी रही है और यह मुझे उसका एक ख़ास चरित्र-लक्षण जान पड़ता है। एक समकालीन रचनाकार के नाते यहाँ मैं अपनी स्थिति को थोड़ा विडम्बनापूर्ण पाता हूँ और लिखते समय अपनी स्थिति के इस दंश को भूलना नहीं चाहता। मेरे लिए लिखना लगभग उसी तरह एक ज़िम्मेवारी से भरा हुआ काम है, जैसे एक मिस्त्री के लिए एक ढीले नट की चूल कसना या एक गड़रिये के लिए अपनी खोई भेड़ की तलाश करना। हम तीनों इसी तरह अपनी-अपनी नागरिकता का शुल्क अदा करते हैं। कविता से मैं उतनी ही माँग करना चाहता हूँ, जितना वह दे सकती है। कविता-सिर्फ़ इस कारण कि वह कविता है, दुनिया को बदल देगी, ऐसी खुशफ़हमी मैंने कभी नहीं पाली। एक रचनाकार के नाते मैं कविता की और ख़ासतौर से एक उपभोक्ता-समाज में लिखी जाने वाली कविता की ताक़त और सीमा दोनों जानता हूँ। इसलिए इस बात को लेकर मेरे मन में कोई भ्रम नहीं कि मेरी पहली लड़ाई अपने मोर्चे पर ही है और वह यह कि किस तरह कविता को मानव-विरोधी शक्तियों के बीच मानव संवेद्य बनाये रखा जाये। परिवर्तन की दिशा में आज एक कवि की सबसे सार्थक पहल यही हो सकती है।
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9789350720387
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Vani Prakashan
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भारत यायावर (भारत यायावर)

भारत यायावर

जन्म : 29 नवम्बर, 1954;हजारीबाग।

शैक्षणिक अनुभव : 1983 से चास महाविद्यालय में हिन्दी के व्याख्याता। 1994 में पाँच महीने सन्त कोलम्बा महाविद्यालय, हजारीबाग में अध्यापन। फरवरी, 2004 से विनोबा भावे विश्वविद्यालय, हजारीबाग के स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग में अध्यापन।

लेखकीय अनुभव : 1974 में पहली रचना का प्रकाशन। 1978 से अखिल भारतीय स्तर की पत्र-पत्रिकाओं में अनेक विधा की रचनाएँ प्रकाशित होने का क्रम अब तक जारी है।

कविता-पुस्तकें : ‘झेलते हुए’, ‘मैं हूँ यहाँ हूँ’, ‘बेचैनी’ एवं ‘हाल-बेहाल’ प्रकाशित।

1979 में ‘जिजीविषा के स्वर’ एवं ‘एक ही परिवेश’ नामक कविता-पुस्तकों का सम्पादन-प्रकाशन, जिसमें प्रारम्भिक कविताएँ संकलितहुईं।

पत्रिकाएँ : ‘नवतारा’, ‘प्रगतिशील समाज’एवं ‘विपक्ष’नामक साहित्यिक पत्रिकाओं का सम्पादन।

खोज-कार्य : हिन्दी के महान लेखक महावीर प्रसाद द्विवेदी एवं फणीश्वरनाथ रेणु की दुर्लभ रचनाओं का खोज-कार्य। इन दोनों लेखकों की लगभग पच्चीस पुस्तकों का संकलन-सम्पादन। ‘रेणु-रचनावली’ एवं ‘महावीर प्रसाद द्विवेदी रचनावली’ का सम्पादन।

अन्य सम्पादित पुस्तकें : ‘कवि केदारनाथ सिंह’, ‘आलोचना के रचना-पुरुष : नामवर सिंह’, ‘महावीर प्रसाद द्विवेदी का महत्त्व’ एवं ‘नामवर सिंह की प्रारम्भिक रचनाएँ’।

पुरस्कार : नागार्जुन पुरस्कार, बेनीपुरी पुरस्कार, राधाकृष्ण पुरस्कार, पुश्किन पुरस्कार, मास्को आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी सम्मान, रायबरेली।

सम्प्रति : प्राध्यापक, हिन्दी विभाग, विनोबा भावे विश्वविद्यालय, (हजारीबाग) में प्राध्यापकपद से सेवानिवृत्त।

ई-मेल : bharatyayawar@yahoo.com

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