Publisher:
Bharatiya Jnanpith

कवि परम्परा : तुलसी से त्रिलोचन

In stock
Only %1 left
SKU
9789326351560
Rating:
0%
As low as ₹240.00 Regular Price ₹300.00
Save 20%

कवि परम्परा तुलसी से त्रिलोचन - 
प्रख्यात समालोचक प्रभाकर श्रोत्रिय की 'कवि-परम्परा' विभिन्न युगों की कविता को ताज़गी और मार्मिकता से आधुनिक पटल पर रखती है। इस पुस्तक में शामिल 21 कवि भक्ति-युग से नयी कविता युग तक का लम्बा काल-विस्तार समेटे हैं। जहाँ एक ओर भक्तिकाल के तुलसी, कबीर, सूर, मीरा हैं, वहीं मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी जैसे राष्ट्रीय धारा के कवि और प्रसाद, निराला, पन्त, महादेवी सरीखे छायावादी कवि हैं। इधर प्रगतिवादी धारा के नागार्जुन, त्रिलोचन हैं तो उधर हैं नयी कविता के अज्ञेय, मुक्तिबोध, शमशेर, नरेश, भारती, वीरेन्द्रकुमार जैन, राम विलास शर्मा जैसे दिग्गज कवि।
अलग-अलग युग के अलग-अलग धारा के, व्यक्तित्ववान कवियों के 'शब्दार्थ' की पहचान करते हुए आलोचक ने एक ऐसा जीवन्त, रंगारंग संसार रचा है, जिससे न तो पुराना कवि 'कल' का लगता है, न आज का कवि अगले और पिछले 'कल' से कटा हुआ, अकेला। मानो कविता अविरल जीवन-धारा है। इस पुस्तक में न कहीं अकादमिक जड़ पाण्डित्य है, न संवेदनहीन निष्प्राण बर्ताव। भाषा-शैली के टटकेपन से हर रचनाकार पुष्प की तरह खिल उठा है; गोया नये पाठक को जिज्ञासा और रुचि का वैविध्यपूर्ण संसार मिल गया हो; एक सलाहकार दोस्त जो उसकी संवेदना, चेतना और विवेक पर चढ़े मुलम्मे आहिस्ता-आहिस्ता उतारता है। भारतीय ज्ञानपीठ को प्रसन्नता है कि ऐसी आलोचना कृति वह पाठक को सौंप रहा है।

ISBN
9789326351560
Publisher:
Bharatiya Jnanpith
More Information
Publication Bharatiya Jnanpith
प्रभाकर श्रोत्रिय (Prabhakar Shrotriya)

प्रभाकर श्रोत्रिय जन्म : 19 दिसम्बर, 1938, प्रख्यात आलोचक, नाटककार, निबन्धकार। प्रखर सन्तुलित : दृष्टि। सर्जनात्मक भाषा और विवेचना की मौलिक भंगिमा। नई कविता का सौन्दर्यशास्त्र, नई और समकालीन  कविता  का  प्रामाणिक  मूल्यांकन, साहित्येतिहास का पुनर्मूल्यन, छायावाद, द्विवेदी-युग, प्रगतिवाद इत्यादि का नव विवेचन। दो दर्जन मौलिक और एक दर्जन सम्पादित ग्रन्थ। प्रमुख कृतियाँ : ‘कविता की तीसरी आँख’, ‘रचना एक यातना है’, ‘जयशंकर प्रसाद की प्रासंगिकता’, ‘संवाद’ (नई कविता-आलोचना), ‘कालयात्री है कविता’, ‘अतीत के हंस : मैथिलीशरण गुप्त’, ‘प्रसाद साहित्य में प्रेमतत्त्व’, ‘हिन्दी कविता की प्रगतिशील भूमिका’, ‘शमशेर बहादुर सिंह’, ‘नरेश मेहता’, ‘सुमन : मनुष्य और सृष्टा’, ‘रामविलास शर्मा : व्यक्ति और कवि’ (आलोचना); ‘धर्मवीर भारती’ (सं.), ‘कविता की तीसरी आँख’ का अंग्रेज़ी अनुवाद ‘The Quintessence of Poetry’ (नाटक); ‘इला’, ‘साँच कहूँ तो...’, ‘फिर से जहाँपनाह’। ‘इला’ का ग्यारह भारतीय भाषाओं में अनुवाद आदि। सम्मान : ‘अखिल भारतीय आचार्य रामचन्द्र शुक्ल पुरस्कार’ (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान), ‘अ.भा. रामकृष्ण बेनीपुरी पुरस्कार’ (बिहार सरकार, भाषा विभाग), ‘आचार्य नंददुलारे वाजपेयी पुरस्कार’ (मध्य प्रदेश साहित्य परिषद), ‘रामेश्वर गुरु पत्रकारिता पुरस्कार’, ‘श्री शरद सम्मान’ आदि। कार्य : निदेशक भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता; निदेशक, भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली; सम्पादक : ‘वागर्थ’, ‘नया ज्ञानोदय’, ‘साक्षात्कार’, ‘अक्षरा’, ‘पूर्वग्रह’। विदेश यात्रा : नार्वे। सदस्य : केन्द्रीय साहित्य अकादेमी, विद्या परिषद महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय। परामर्शदाता : केन्द्रीय साहित्य अकादेमी (हूज. हू. हिन्दी), नेशनल बुक ट्रस्ट, दिल्ली लक्ष्मीदेवी ललित कला अकादमी, कानपुर। निधन : 15 सितम्बर, 2016

Write Your Own Review
You're reviewing:कवि परम्परा : तुलसी से त्रिलोचन
Your Rating
कॉपीराइट © 2025 वाणी प्रकाशन पुस्तकें। सर्वाधिकार सुरक्षित।

डिज़ाइन और विकास: Octagon Technologies LLP