कविता के सम्मुख
कविता के सम्मुख -
पुस्तक में संगृहीत लेख किसी योजना के तहत नहीं वरन् कुछ कवियों के काव्य-मर्म को पहचानने की प्रक्रिया में अलग-अलग समय में लिखे गये। परिणामस्वरूप इन लेखों में पर्याप्त भिन्नता दिखाई पड़ेगी। आलोच्य कवियों की कविताओं में व्यक्त भाव-बोध तथा विचारधारा के साथ-साथ भिन्न सौन्दर्य धरातल के भी बहुत-से पहलू हैं। लेकिन यह भी सच है कि समानधर्मा होने के बावजूद ये सभी कवि अलग-अलग ढंग की अभिव्यक्ति के क़ायल रहे हैं।
मेरे अपने तई एक समानता यह भी है कि हमारी पीढ़ी इन्हीं कवियों को पढ़-सुनकर बड़ी हुई। विरोधी विचारधाराओं, काव्यान्दोलनों और खेमेबंदी के बावजूद हमारी पीढ़ी ने इन्हें साथ-साथ घोखा है। क्या नागार्जुन और त्रिलोचन के बिना अज्ञेय या शमशेर की कविता पर बात करना संभव है? अतः अज्ञेय के साथ हमारी पीढ़ी के ज़ेहन में मुक्तिबोध का भी अक्स उभरता है। इस तरह 'नयी कविता' और उस के समानान्तर बहने वाली 'प्रति कविता' या प्रगतिशील काव्यधारा को आमने-सामने रखकर ही हमारे समय का मुकम्मल चेहरा बनता है।
मुक्तिबोध और रघुवीर सहाय की कविताओं पर कोई स्वतन्त्र लेख प्रस्तुत करना इस पुस्तक में सम्भव नहीं हो सका। लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि ये दोनों महत्त्वपूर्ण कवि आलोच्य कवियों से किसी रूप में कमतर हैं। बल्कि, मेरी दृष्टि में इन की कविताओं के स्वर-साँचे से ही अपने समय राग सम्पूर्णता को प्राप्त होता है।