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ख़ुद से मिलने की फ़ुरसत किसे थी

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Khud Se Milne Ki Fursat Kise Thi
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‘तू मिरी सोच भी, तस्वीर भी और बोली भी 

मैं तिरी माँ भी, तिरी दोस्त भी हमजोली भी‘

समाजी और सियासी ताक़तों ने बड़े पैमाने पर हमारे नज़रिये और उस तहरीक को एक शक्ल दी है जिसे आज हमने फेमिनिज़्म या हुकूक-ए-निस्वा का नाम दिया है। भले ही परिभाषाएँ अलग-अलग हों, लेकिन ज़्यादातर लोग इस बात से इत्तिफाक करते होंगे कि ये तहरीक मर्द और औरत में समानता की बात करती है। मुआशरें' में चली आ रही एक सदियों पुरानी ग़लत रिवायत की दुरुस्ती जिसमें औरतों को या जिन्हें सिमोन द बोउवा (Simone De Beauvoir) ने द सेकेंड सेक्स या नज़रअन्दाज़ औरतें कहा है, कमतर समझा गया है जो मर्दों के निस्बत परिभाषित की जा रही औरतों के खिलाफ सरासर नाइंसाफी है। बोउवा के 'द सेकेंड सेक्स' के बाद के सत्तर सालों के दौरान, लिंग और लैंगिकता ने कई बहस-मुबाहिसों को जन्म दिया है और मर्द तथा औरत के बीच की बराबरी आज भी बहस का मरकज़ बनी हुई है।

- पेश लफ़्ज़ से 

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Khud Se Milne Ki Fursat Kise Thi
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