किन्नर : सेक्स और सामाजिक स्वीकार्यता
मापदण्ड उच्च से उच्च स्थापित किये जा रहे होंगे। कलात्मकता बढ़ती जा रही होगी। दर्शन घनीभूत होता जा रहा होगा लेकिन मापदण्डों की श्रेष्ठता, कला की उच्चता और दर्शन की घनीभूतता तनिक भी विक्षेप सहन नहीं करती। ऐसे में तृतीय प्रकृति ने सामंजस्य बिठाना चाहा होगा। उसकी देह पृथक् थी, भावनाएँ पृथक्। पुरुष देह में स्त्री भावनाएँ छटपटाती होंगी। जब उसने पहली बार सम्भोग को छुआ होगा, हतप्रभ रह गया होगा वह । ये क्या ? उभरा होगा अन्तर और बाह्य के बीच का द्वन्द्व । शरीर ने कुछ और किया होगा और मन ने कुछ और चाहा होगा या फिर कौन जाने इस स्थिति तक आने से कहीं पहले कई संघर्ष गुज़र चुके होंगे देह और मन के बीच। तो कुछ और ही चाहा होगा तृतीय प्रकृति ने... भारत में किन्नरों का भी एक 'गोल्डन एरा' यानी कि स्वर्णकाल था। दरअसल किन्नरों को मुग़ल साम्राज्य में सबसे पहले अहमियत दी गयी थी। किन्नरों को महिलाओं के हरम की रक्षा की ज़िम्मेदारी दी जाती थी। मुग़ल साम्राज्य का मानना था कि किन्नर हमारे समाज का एक अहम हिस्सा हैं और इसलिए उन्हें इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी सौंपी गयी। यह भी समझा जाता था कि महिलाओं को किन्नरों से किसी प्रकार का कोई ख़तरा नहीं था । किन्नर उनकी कई सेनाओं के जनरल भी थे तो कई रानियों के पर्सनल बॉडीगार्ड भी ।
भारत में किन्नरों की स्थिति यूरोप के किन्नरों से एकदम अलग थी, और है। भारत में किन्नरों का अलग मोहल्ला होता है जहाँ किन्नर एक साथ रहते हैं। किन्नर एक मामले में सबसे अलग हैं क्योंकि वे घरों में तभी आते हैं जब बेटा पैदा हो या फिर घर में नयी बहू आये। यानी कि किन्नर आपकी खुशियों के साथी हैं। ग़म में कहीं दिखाई नहीं देते।