किस लौ प्रीत करें
किस लौ प्रीत करें -
इस उपन्यास में प्राध्यापकों महिला प्राध्यापकों तथा नयी पीढ़ी के छात्र-छात्राओं का अतुल्य संसार है जो अन्तर्विरोधों, द्वन्दों तथा औचित्यों के साथ उद्घाटित होता चलता है।
इसमें आधुनिकता के साथ परम आवेगपरकता, भावकुता, भावुकता तथा रोमांटिकता की भी झिलमिल छायाएँ हैं। इसे रोमांटिकोन्मुख यथार्थता का नाम दिया जा सकता है।
यह उपन्यास दौड़ता नहीं, बल्कि गहराई में उतरता जाता है जहाँ पात्र अन्तर्यामी तथा मनोपथगामी भी हैं। सो यहाँ अन्तरंग प्रेम सम्बन्धों के प्रकारों का खुलासा है।
उपन्यास नारी के तन-मन-जीवन को एकतान करके 'नारी सशक्तिकरण' की परिपूर्णता का अन्तर्मुखी दस्तावेज़ संरूप भी है।
इसमें सीमित फलक पर कविताशों की फुलकारी, प्रकृति-चित्रों की मोहिनी तथा शिक्षा संस्थानों, कार्यालयों अफसर-तन्त्र की क्रिया प्रतिक्रियाएँ भी गुँथी है।
तो फ़ैसला करें कि क्या यह समकालीन प्रेम दशाओं का समाजशास्त्र है।
अन्तिम पृष्ठ आवरण -
पता नहीं क्यों-उसे भीतर ही भीतर आभास हुआ कि कामिनी उससे अपनी नज़दीकी बढ़ाना चाहती है... और स्त्री-पुरुष का पारस्परिक आकर्षण तो शाश्वत है ही। हो सकता है यह उसके मन की आवृत्ति हो और वह कहीं मन ही मन उसके प्रति आकृष्ट हो रहा हो... अन्यथा वो उसे सीधा ही मना कर देता। अब वो कल उसे कैसे मना कर पायेगा... और अगर आँसू बहाने लग गयी तो? कितनी ग़लतफ़हमी और बेमतलब दुष्प्रचार कौन सुनेगा? एक युवा प्रोफ़ेसर की...वो भी अविवाहित, अस्थायी। फिर तो रोड मास्टर ही बनोगे बच्चे... हिमांशु तो जैसे विवेकहीन हो गया। सीधे-सीधे ना भी तो नहीं कर सकता था-एक लड़की, युवती, सुन्दर, थोड़ी भरी-भरी, कुल मिलाकर सहज ही ध्यान आकर्षित कर ले... और उम्र के जिस पड़ाव पर वो है उस पर तो साधारण से साधारण रूपसी भी जैसे अप्सरा सी प्रतीत होने लगती है...
Publication | Vani Prakashan |
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