"कितना अकेला आकाश -
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित श्रीनरेश मेहता का यह प्रथम यात्रा संस्मरण 'कितना अकेला आकाश' में भारतीय कवि द्वारा अपनी सहज सर्जक दृष्टि से यूरोपीय जीवनधारा को परखने की चेष्टा है। यूगोस्लाविया के एक छोटे-से जनस्थान स्त्रूगा में आयोजित काव्य समारोह में एकमात्र भारतीय प्रतिनिधि के रूप में सहभागिता करने के लिए भेजे गये श्रीनरेश मेहता ने सहज कौतुक से न सिर्फ स्त्रूगा को देखा; बल्कि वहाँ के जीवन, वहाँ के स्त्री-पुरुषों की गतिविधियों, भावमुद्राओं, मानसिकताओं और हलचलों की भी मन के कैमरे में छवि उतारी। एनी और बुदिमका जैसे सौम्य और बुद्धिदीप्त महिलाओं के सहयोग ने कवि के अकेले और सूने आकाश को दीप्ति और उल्लास से भर दिया।
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"श्रीनरेश मेहता -
15 फ़रवरी, 1922 को शाजापुर, मालवा में जन्मे श्रीनरेश मेहता आधुनिक भारतीय साहित्य के शीर्षस्थ कवि, कथाकार और चिन्तक है। शिप्रा नर्मदा से लेकर गंगा तक फैले हुए उनके जीवन का फलक काफ़ी विस्तृत है। काशी विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए. के बाद कुछेक दैनिक पत्रों और फिर आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों में सेवा कार्य किया। सन् 1942 के स्वाधीनता आन्दोलन में छात्रनेता के रूप में सक्रिय भूमिका निभायी, और द्वितीय विश्वयुद्ध के समय सेना में सेकेंड लेफ्टिनेंट का पद भार भी ग्रहण किया। इन सबके बावजूद काँकर-कंटकों से भरे जीवन पथ को बन्धु मानने की उनकी बुनियादी आस्था ने उन्हें रचनाकर्म की ओर मोड़ दिया। सौभाग्य से काशी के सारस्वत परिवेश और ऋषितुल्य आचार्य केशव प्रसाद मिश्र, पं. गोपीनाथ कविराज जैसे मनीषी पुरुषों के सान्निध्य ने उनके भीतर के रचनाकार को वैदिक एवं औपनिषदिक चिन्तन को भूमिका में ला दिया।
उनकी अब तक प्रकाशित रचनाओं में 15 काव्य संकलन, 7 उपन्यास, 3 कहानी संग्रह, 4 नाटक, 4 चिन्तनपरक ग्रन्थ और एक यात्रावृत्त विशेष उल्लेखनीय हैं।
मध्य प्रदेश शासन के 'राजकीय सम्मान', 'सारस्वत सम्मान', 'शिखर सम्मान', उ. प्र. के 'संस्थान सम्मान', हिन्दी साहित्य सम्मेलन के 'मंगलाप्रसाद पारितोषिक', साहित्य अकादेमी पुरस्कार, उत्तरप्रदेश साहित्य संस्थान के 'भारतभारती' सम्मान तथा 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' आदि से सम्मानित।
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