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Vani Prakashan
कोई बात नहीं
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9789389563740
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पिछले फ्लैप का शेष युवाओं के मन की अँधेरी गलियों में खुलती हैं जिनमें धुन्ध है, कोहरा है, अवचेतन आग्रहों के दबाव हैं और सामाजिक सम्बन्धों के अन्तर्भाव हैं। इन्हें खोलना जैसे बर्र के छत्ते में हाथ डालना है। लेकिन सजग और सचेत कहानीकार ने युवा मानस के धुंधले जीवन-सत्य को उनके मानसिक ऊहापोह के भीतर से धीरे-धीरे उभारते हुए जिस सहजता से उद्घाटित किया है वह ध्यान खींचने वाला है। इससे यह भी पता चलता है कि बाहरी दुनिया जिस तेज़ गति से आगे बढ़ रही है उसमें मन की अन्दरूनी सतहों पर कितना कुछ घिसटता हुआ चल रहा है। इस संग्रह की पहली ही कहानी 'कोई बात नहीं' एक ज़रूरी विषय को इस तरह सामने लाती है जिससे इस संग्रह को सार्थक पहचान मिलती है! भाषिक बुनावट की दृष्टि से भी कहानियाँ हमारे पास-पड़ोस की जटिल मनःस्थितियों को इस तरह घटित करती हैं जिससे युवाओं के अन्तःकरण का एक अनदेखा रूप जीवन के समान्तर ही धड़कता और साँस लेता दिख जाता है। अन्ततः कहानी का उद्देश्य भी यही है कि वह अपनी व्याप्ति और निष्पत्ति में हमें हमारा ही जिया हुआ जीवन वापस हमीं को सौंप देती है जिसकी आवाज़ हमें इस संग्रह में सुनाई देती है। सूर्यनाथ सिंह इस कृति में एक ज़िम्मेदार कथाकार की गहरी और समझदार पहचान बनाते नज़र आते हैं। -आनन्द कुमार सिंह
ISBN
9789389563740
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Vani Prakashan
Publication | Vani Prakashan |
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