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Vani Prakashan

कोई बात नहीं

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पिछले फ्लैप का शेष युवाओं के मन की अँधेरी गलियों में खुलती हैं जिनमें धुन्ध है, कोहरा है, अवचेतन आग्रहों के दबाव हैं और सामाजिक सम्बन्धों के अन्तर्भाव हैं। इन्हें खोलना जैसे बर्र के छत्ते में हाथ डालना है। लेकिन सजग और सचेत कहानीकार ने युवा मानस के धुंधले जीवन-सत्य को उनके मानसिक ऊहापोह के भीतर से धीरे-धीरे उभारते हुए जिस सहजता से उद्घाटित किया है वह ध्यान खींचने वाला है। इससे यह भी पता चलता है कि बाहरी दुनिया जिस तेज़ गति से आगे बढ़ रही है उसमें मन की अन्दरूनी सतहों पर कितना कुछ घिसटता हुआ चल रहा है। इस संग्रह की पहली ही कहानी 'कोई बात नहीं' एक ज़रूरी विषय को इस तरह सामने लाती है जिससे इस संग्रह को सार्थक पहचान मिलती है! भाषिक बुनावट की दृष्टि से भी कहानियाँ हमारे पास-पड़ोस की जटिल मनःस्थितियों को इस तरह घटित करती हैं जिससे युवाओं के अन्तःकरण का एक अनदेखा रूप जीवन के समान्तर ही धड़कता और साँस लेता दिख जाता है। अन्ततः कहानी का उद्देश्य भी यही है कि वह अपनी व्याप्ति और निष्पत्ति में हमें हमारा ही जिया हुआ जीवन वापस हमीं को सौंप देती है जिसकी आवाज़ हमें इस संग्रह में सुनाई देती है। सूर्यनाथ सिंह इस कृति में एक ज़िम्मेदार कथाकार की गहरी और समझदार पहचान बनाते नज़र आते हैं। -आनन्द कुमार सिंह
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9789389563740
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सूर्यनाथ सिंह (Suryanath Singh)

"सूर्यनाथ सिंह - जन्म : 14 जुलाई, 1966, सवना, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश। पढ़ाई-लिखाई : इलाहाबाद विश्वविद्यालय और फिर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से। किताबें : कुछ रंग बेनूर (कहानी संग्रह), चलती चाकी (उपन्यास)। 'शेर सिंह को मिली कहानी', 'बर्फ़ के आदमी', 'बिजली के खम्भों जैसे लोग', 'सात सूरज सत्तावन तारे', 'तोड़ी कसम फिर से खाई' (सभी बाल साहित्य)। ‘आशापूर्णा देवी की श्रेष्ठ कहानियाँ', 'गाथा मफस्सिल',देवेश राय, 'खोये का गुड्डा', अवनीन्द्रनाथ ठाकुर और 'राजा राममोहन राय', विजित कुमार दत्त का बांग्ला से हिन्दी अनुवाद। कुछ रचनाओं के बांग्ला, ओड़िया और पंजाबी में अनुवाद हो चुके हैं। पुरस्कार : हिन्दी अकादमी, दिल्ली का बाल एवं किशोर साहित्य सम्मान सूचना एवं प्रसारण मन्त्रालय के प्रकाशन विभाग का भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार। "

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