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कोरे कागज़

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Kore Kagaz
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कोरे काग़ज़ - 
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित अमृता प्रीतम का महत्त्वपूर्ण लघु उपन्यास है कोरे काग़ज़। नाम ज़रूर है कोरे काग़ज़, मगर एक युवा मन की कितनी कातरता, कितनी बेचैनी इसमें उभरकर आयी है, इसका अनुमान आप उपन्यास प्रारम्भ करते ही लगा लेंगे। चौबीस वर्षीय पंकज को जब यह पता चलता है कि उसकी माँ, उसकी माँ नहीं थी, तब अपनी असली माँ, अपने असली बाप को जानने की तड़प उसे दीवानगी की हदों तक ले जाती है। उसकी अपनी पहचान जैसे ख़ुद उसके लिए अजनबी बन जाती है। कुँवारी माँ का नाजायज़ बेटा—उसकी और उसके बाप के बीच एक ही रिश्ता तो क़ायम रह सकता था—कोरे काग़ज़ का रिश्ता।
प्रस्तुत है, अमृता प्रीतम के इस मनोहारी उपन्यास कोरे काग़ज़ का नया संस्करण।

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Kore Kagaz
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Publication Bharatiya Jnanpith
अमृता प्रीतम (Amrita Pritam )

"अमृता प्रीतम - भारतीय साहित्य में कथाकार एवं कवयित्री के रूप में एक बहुचर्चित नाम । 31 अगस्त, 1919 को गुज़राँवाला (पंजाब) में जन्म । बचपन बीता लाहौर में, शिक्षा भी वहीं हुई। किशोरावस्था से लिखना शुरू कर दिया था——कविता, कहानी, उपन्यास और निबन्ध भी। प्रकाशित पुस्तकें पचास से अधिक। महत्त्वपूर्ण रचनाएँ: काग़ज़ ते कैनवस, मैं जमा तू (कविता संग्रह), पिंजर, जलावतन, यात्री, कोरे काग़ज़ (उपन्यास); सात सौ बीस क़दम (कहानी-संग्रह); काला गुलाब, सफ़रनामा, अज्ज दे काफ़िर (गद्य-कृतियाँ); रसीदी टिकट (आत्मकथा) आदि। अनेक रचनाएँ देशी-विदेशी भाषाओं में अनूदित। साहित्यिक पत्रकारिता में विशेष रुचि। 'साहित्य अकादेमी पुरस्कार' (1956), बुल्ग़ारिया के 'वैप्सरोव पुरस्कार' (1980), और 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' (1981) से सम्मानित। देहावसान : 31 अक्तूबर, 2005। "

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