कुंडलपुर बड़ेबाबा आदिनाथ का
कुण्डलपुर, बड़ेबाबा आदिनाथ का
ग्रंथ के बारे में
मध्यप्रदेश के दमोह जिले में स्थित दिगम्बर जैन तीर्थ सिद्धक्षेत्र कुण्डलपुर की कीर्ति, वहाँ प्रतिष्ठित 12 फुट ऊँची तथा एक ही पत्थर में तराशी गई, लगभग 5वीं 6वीं शती की गुप्तकालीन, भगवान् आदिनाथ की पद्मासनस्थ प्रतिमा के कारण है, जिसकी मान्यता लोक में बड़ेबाबा के रूप में है।
17वीं शती के अंत में आचार्य श्री सुरेन्द्रकीर्ति जी ने कुण्डलगिरि की पहाड़ियों में बड़ेबाबा की मूर्ति की खोज की और बड़ेबाबा मंदिर के जीर्णोद्धार का संकत्य किया। उनकी समाधि के पश्चात्, उनके शिष्य ब्रहचारी नेमिसागर ने बुन्देलखण्ड के महाराजा छत्रासाल के सहयोग से बड़ेबाबा मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।
1700 ई. से लेकर 1975 ई. तक बड़ेबाबा मूर्ति के बारे में भ्रांति बनी रही कि यह महावीर भगवान् की है। 19वीं शती के अंत में पुरातत्त्वविद् बेगलर ने नेमिनाथ के रूप में तथा कनिघम व काउसन्स आदि ने महावीर के रूप में इनकी पहचान की। 1949 में श्री नीरज जैन ने सिंहपीठ में अंकित यक्ष-यक्षिणी की पहचान के आधार पर, प्रथम बार उचित ही सिद्ध किया कि यह प्रतिमा तीर्थंकर आदिनाथ की है।
कतिपय कारणों से संत शिरोमणि दिगम्बराचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के मार्गदर्शन में, बड़ेबाबा के नवीन मंदिर निर्माण का निर्णय लिया गया और 2006 में बड़ेबाबा को पुराने मंदिर से नए मंदिर में स्थानांतरित कर दिया गया।
कुण्डलपुर, बड़ेबाबा आदिनाथ का, ग्रंथ में कुण्डलपुर क्षेत्रा, बड़ेबाबा आदिनाथ की खोज, बड़ेबाबा के पुराने व नए मंदिर के निर्माण, बड़ेबाबा की आदिनाथ के रूप में पहचान तथा कुण्डलपुर सिद्धक्षेत्र में स्थित 63 मंदिरों की वास्तुशैली, निर्माणकाल, निर्माताओं तथा उनमें प्रतिष्ठित जिनप्रतिमाओं के बारे में गहन व विस्तृत शोधपूर्ण जानकारी संग्रहीत है।
- डॉ. सुषा मलैया
Publication | Bharatiya Jnanpith |
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