ललमुनिया, घोंसला कहाँ बनाओगी

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9789352294725
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हमारे चारों ओर जो कुछ भी बिखरा है, फैला है, पसरा है और घटता रहता है वह सब कुछ हमें एक ऊर्जा भी देता है और दृष्टि-सम्पन्न भी बनाता है। यह बहुत कुछ सबके जीवन में हैं, और मैं भी इससे अलग नहीं हूँ। गहराई से विचार करने पर हम पाते हैं कि इस बहुत कुछ में कुछ अनकहा भी है और वह अपनी उपस्थिति पाता है कविता की संरचना में।.... कुछ खोजने की तलाश में ये कविताएँ स्मृतियों से लेकर समुद्र की हवाओं, जंगलों से लेकर गाँव और खेतों तक जाती हैं और जीवन के बहुविध दृश्यों को स्पर्श करती चलती हैं। जीवन की अनेक छवियों ने मन को कहीं-कहीं गहरे तक छुआ है और वे छवियाँ शब्दों के माध्यम से प्रतिकृति के रूप में ढलकर उपस्थित हुई हैं। ऐसे ही बन पड़ी हैं ये कविताएँ ।

ISBN
9789352294725
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