‘लपटें' प्रतिष्ठित कथाकार चित्रा मुद्गल की नयी कहानियों का संग्रह है।चित्रा मुद्गल की कहानियों का प्रमुख स्वर 'नारी मुक्ति' है। 'लपटें' की कहानियों में एक ओर जहाँ मध्यवर्गीय नारी अपने अस्तित्व और स्वाभिमान की रक्षा के लिए पुरुष प्रधान समाज द्वारा किये अवमूल्यन से टकरा रही है, वहीं चारों ओर फैले अन्याय, शोषण, अत्याचार, अमानवीयता आदि का खुला प्रतिवाद कर रही है। यातना चाहे नारी की हो या सर्वहारा की, किसी वृद्ध की हो या बच्चे की, चित्रा मुद्गल उसके उत्स तक जाने की कोशिश करती हैं और व्यवस्था के सभी पहलुओं के साथ मनुष्य के पारस्परिक सम्बन्धों में, उनके अन्तर्जगत में झाँकती हैं। यही वजह है कि उनकी कहानियों में व्यवस्था का क्रूर, अमानवीय, जनविरोधी चरित्र बार-बार उभरता है।
एक कथाकार की ऊर्जावान उपस्थिति आप इन कहानियों में पायेंगे जहाँ बाहरी दिखावा नहीं, भीतर का आँवा है। कहानियों में भाषा का वेग, मिथक, बिम्ब, प्रतीक आदि का सार्थक प्रयोग और इनके रचाव की तल्लीनता इन्हें विशेष बनाती है। इनमें जहाँ चित्र और रंग का संयोजन होता है ये कहानियाँ बेहतरीन कला-कृतियाँ बन जाती हैं।
"चित्रा मुद्गल
2018 के साहित्य अकादेमी सम्मान से सम्मानित चित्रा मुद्गल का जन्म 10 दिसम्बर, 1943 को एगमोर चेन्नई में हुआ। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा जनपद उन्नाव (उ.प्र.) में उनके पैतृक गाँव निहाली खेड़ा से लगे गाँव भरतीपुर के कन्या पाठशाला में हुई। 1962 में हायर सेकेण्डरी पूना बोर्ड से। शेष पढ़ाई मुम्बई विश्वविद्यालय से तथा बहुत बाद में स्नातकोत्तर पत्राचार पाठ्यक्रम से एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, मुम्बई से।
चित्रकला में गहरी अभिरुचि के चलते जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट्स में फाइन आर्ट्स का अधूरा अध्ययन। सौमैया कॉलेज में पढ़ाई के दौरान, संगठित और असंगठित क्षेत्र के श्रमिक आन्दोलनों से जुड़ीं। घरों में झाडू-पोंछा कर जीवनयापन करने वाली बाइयों के बुनियादी अधिकारों के लिए संघर्षरत संस्था की बीस वर्ष की वय में सचिव बनीं।
प्रथम कहानी सफ़ेद सेनारा नवभारत टाइम्स की कहानी प्रतियोगिता में पुरस्कृत होकर 25 अक्तूबर, 1964 में 'रविवारीय' में प्रकाशित हुई। 1980 में पहला कथा-संग्रह ज़हर ठहरा हुआ छपा। अब तक तेरह कहानी संग्रह प्रकाशित। दुलहिन, जिनावर, अपनी वापसी, लक्षागृह, इस हमाम में, जगदम्बा बाबू गाँव आ रहे हैं, लपटें विशेष चर्चित हुए। उन्होंने लगभग सौ कहानियाँ लिखी हैं।
1990 में उनके पहले उपन्यास एक ज़मीन अपनी को विज्ञापन जगत पर लिखा गया प्रथम उपन्यास मानकर सराहा गया। 2003 में दूसरे उपन्यास आवाँ के लिए के.के. बिड़ला फ़ाउंडेशन के तेरहवें व्यास सम्मान से समादृत।
आवाँ मराठी, पंजाबी, असमियाँ, कन्नड़, बांग्ला में अनूदित, तेलगू, उर्दू, अंग्रेज़ी में अनुवाद जारी। तीसरा उपन्यास 'गलिगडु उर्दू, पंजाबी, मलयालम में अनूदित। इसके अलावा बयार उनकी मुट्ठी में और विचार (कॉलम), तहख़ानों में बन्द अक्स (कथात्मक रिपोर्ताज़), बयान (लघुकथाएँ), माधवी कन्नगी, मणि मेखलै, जीवन (तीन बाल उपन्यास), पेड़ पर खरगोश, जंगल का राज, नीति कथाएँ, सूझबूझ, कटोरी में कटोरा, देश-विदेश की लोककथाएँ आदि कृतियाँ प्रकाशित। अंग्रेज़ी में हाइना एंड अदर स्टोरीज और उपन्यास कूसेड (एक ज़मीन अपनी का अनुवाद) प्रशंसित। कहानियाँ अनेक विश्व भाषाओं में अनूदित। सहस्राब्दि के पहले अन्तरराष्ट्रीय ‘इन्दु शर्मा कथा सम्मान' (लन्दन) से सम्मानित।
सम्प्रति : स्वतन्त्र लेखन और सामाजिक कार्यों से जुड़ी हुई हैं।
ई-मेल : mail@chitramudgal.info"