मानस का उस

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मानस का उस - 
'मानस का उस' मनोभाव की एक अवस्था है। जैसे 'मैं' अहंभाव का द्योतक है वैसे ही 'उस' नकारात्मक भाव का। जब किसी कार्य के बिगड़ने की बात आती है तो झट से 'उस भाव' का आरोपण दूसरों पर हो जाता है और कह उठते हैं——मैंने नहीं, उसने ऐसा कर दिया। मतलब उसके तर्कों से स्पष्ट हो जाता है कि उक्त कार्य के सकारात्मक पक्ष को तो उसने बख़ूबी अंजाम दिया, किन्तु नकारात्मक पक्ष इसलिए सामने आया, क्योंकि उसने ऐसा कर दिया। गोया उसका हाथ नहीं लगता अथवा उसकी भूमिका इसमें नहीं होती तो सफलता में सन्देह होता ही नहीं।
'मानस का उस' में कुल तेरह कहानियाँ हैं। सभी कहानियाँ पठनीय एवं समकालीनता से पूर्ण हैं। उम्मीद है कि, ये सभी कहानियाँ पाठकों को पसन्द आयेंगी। कहानियों में सामाजिकता के विविध प्रसंगों को उभारने की कोशिश की गयी है, जिसको देखने हेतु नज़रियों को भी प्रयोगधर्मी रखने पर ज़ोर दिया गया। विश्वास ही नहीं अपितु दावा है कि विभिन्न कहानियों से गुज़रते हुए पाठकों को आवश्यक और मनपसन्द विषयों से गुज़रने का अहसास होगा, जो समय और हालात की माँग है। सभ्यता को श्लिष्ट रखने के लिए यह निहायत ही आवश्यक है।

ISBN
9789390659180
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