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माटी कहे कुम्हार से

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माटी कहे कुम्हार से -

प्रख्यात कथाकार मिथिलेश्वर का नवीनतम उपन्यास है-'माटी कहे कुम्हार से'। झोपड़पट्टियों में हाशिए के जीवन की तल्ख सच्चाई से प्रारम्भ यह उपन्यास इक्कीसवीं सदी के भारतीय गाँवों की बेबाक पड़ताल करते हुए शहर में पहुँच, शहरी जीवन एवं शहरी समाज की पर्ते उधेड़ उनकी प्रखर अन्तःकथा प्रस्तुत करता है; और फिर यहाँ के जीवन एवं समाज की ज़िम्मेवार भारतीय लोकतन्त्र की राजनीति का कच्चा चिट्ठा खोलकर रख देता है। इस रूप में यह उपन्यास भारतीय जीवन, समाज एवं राजनीति की महागाथा बन जाता है। उपन्यास का कैनवास इतना विस्तृत एवं व्यापक है कि इसे भारतीय जीवन का महाकाव्यात्मक आख्यान भी कहा जा सकता है।

वैसे तो मिथिलेश्वर ने अपने कथा-साहित्य के माध्यम से कई उल्लेखनीय महिला चरित्रों की रचना की है। लेकिन इस उपन्यास की मुख्य पात्र मुनिला का चरित्र उन सबसे अधिक प्रभावी और विशिष्ट है-अद्भुत और काल पर विजय पानेवाला अविस्मरणीय।

इस उपन्यास की भोजपुरी मिश्रित जीवन्त ज़मीनी भाषा और मिथिलेश्वर की विलक्षण किस्सागोई ने इसे बेहद पठनीय बना दिया है। लोकजीवन और लोककथाओं से गहरी संपृक्ति इस उपन्यास की एक अन्यतम विशेषता है। तेज़ी से बदलते समय और समाज के गतिशील यथार्थ की सफल रचनात्मक प्रस्तुति के रूप में यह उपन्यास अलग से जाना जायेगा। विश्वास है, हिन्दी जगत में इस महत्त्वपूर्ण कृति का गर्मजोशी से स्वागत होगा।

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9789357756419
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Bharatiya Jnanpith
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Publication Bharatiya Jnanpith
मिथिलेश्वर (Mithileshwar)

"मिथिलेश्वर - जन्म : 31 दिसम्बर 1950, बिहार के भोजपुर ज़िले के बैसाडीह नामक गाँव में। शिक्षा : एम.ए., पीएच. डी. (हिन्दी)। लेखन : 1965 के छात्र-जीवन से ही प्रारम्भ। अब तक सौ से अधिक कहानियाँ, दो उपन्यास, दर्जनों समीक्षात्मक आलेख, संस्मरण, व्यंग्य, निबन्ध और टिप्पणियाँ प्रायः सभी स्तरीय एवं प्रसिद्ध पत्रिकाओं में प्रकाशित । अनेक कहानियाँ विभिन्न देशी तथा विदेशी भाषाओं में अनूदित । प्रकाशित पुस्तकें : कहानी-संग्रह - बाबूजी (1976), बन्द रास्तों के बीच (1978), दूसरा महाभारत (1979), मेघना का निर्णय (1980), तिरिया जनम (1982), हरिहर काका (1983), एक में अनेक (1987), एक थे प्रो. बी. लाल (1993)। उपन्यास-झुनिया (1980) और युद्ध स्थल (1981)। बालोपयोगी कथा-पुस्तक- उस रात की बात (1993) । सम्मान-पुरस्कार : बाबूजी कहानी-संग्रह के लिए म.प्र. साहित्य परिषद् द्वारा वर्ष 1976 के 'अखिल भारतीय मुक्तिबोध पुरस्कार', बन्द रास्तों के बीच कहानी-संग्रह के लिए सोवियत रूस द्वारा वर्ष 1979 के 'सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार', मेघना का निर्णय कहानी-संग्रह के लिए उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा वर्ष 1981-82 के 'यशपाल पुरस्कार' तथा निखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन द्वारा राज्य के सर्वोत्कृष्ट हिन्दी लेखन के लिए वर्ष 1983 के 'अमृत पुरस्कार' से पुरस्कृत एवं सम्मानित । सम्प्रति : प्राध्यापक, हिन्दी विभाग, एच.डी. जैन कॉलेज, आरा (बिहार) । सम्पर्क : महाराजा हाता कतिरा, आरा (बिहार) ।"

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