'दिलीप कभी मुनासिब नाटकीयता के साथ और कभी बिना किसी नाटकीयता के, अपने ग़लत या कई बार अनैतिक समझे जाने का जोख़िम उठाकर कविता में सच कहने, सत्यकथन का लगातार दस्साहस करते थे। कठिन समय में सच भी कठिन होता है और उसे किसी आसान तरीक़े से समझा-कहा-खोजा नहीं जा सकता। दिलीप चित्रे का अपना काव्यशिल्प इस दहरी कठिनाई से जूझता कठिन शिल्प है जिसे सच की प्रामाणिकता अधिक प्यारी है, सरलता का आकर्षण प्रलोभन नहीं उसका अभीष्ट नहीं। उनकी कविता जगत्समीक्षा और आत्मसमीक्षा कई बार एक साथ है। हमें वही कवि अपने सच कहने से भरोसे का लगता है जो अपनी सचाई का भी निर्ममता से बखान कर सके। उनकी कविता कभी-कभी 'हरामज़ादी आवाज़' भी बन सके इस जतन से वे कभी विरत नहीं हुए। जो कविता हमारी जिजीविषा न बढ़ाये, जिज्ञासा न उकसाये, निरुपायता से मुक्त न करे, हमें अपने सबसे ख़राब सपनों का सामना करने की ताब न दे वह हमारे ज़्यादा काम या दिलचस्पी की नहीं हो सकती। दिलीप की कविता का वितान इतना विस्तत है कि उसमें अदम्य जिजीविषा, अपार जिज्ञासा, विकल्प की अथक तलाश और झुलसाने वाली ताब के क्षण बार-बार कभी अकेले, कभी और तत्त्वों के साथ सहज ही मिलते रहते हैं। वह एक स्तर पर एक बेचैन- नाराज़-चीखते कवि का आदमीनामा है जो दूसरी ओर एक ऐसे समय का छोटे-छोटे, कई बार बेहद घरेलू ब्योरों में चरितार्थ और विन्यस्त आख्यान जिससे क्रान्तियों की विफलता राजनीति और धर्म के विद्रूप, भारतीय समाज की बढ़ती हिंसा, आर्थिकी द्वारा लादी जा रही गोदामियत, विचार को अपदस्थ करने के षड्यन्त्र, भाषा का सचाई से बढ़ता विच्छेद और और आत्म और व्यक्ति के तरह-तरह के अवमूल्यन देखे-सहे हैं। ऐसे तुमुल में दिलीप उन कवियों में रहे हैं जिन्होंने मानवीय अन्तःकरण, प्रतिरोध और प्रश्नवाचकता की आवाज़ को कविता के रूप में बचाने, उसके लिए जगह बनाने की असमाप्य चेष्टा की।’ -अशोक वाजपेयी
दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे ब्रिटिश कालीन बड़ोदा राज्य में जन्म, पुणे में निधन। अंग्रेज़ी और मराठी के विश्व प्रसिद्ध द्विभाषी कवि, अनुवादक, चित्रकार संगीतज्ञ, फ़िल्मकार और सम्पादक। 1994 में मराठी में लिखी गयी मौलिक रचनाओं एकूण कविता के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार। उसी वर्ष सन्त तुकाराम की कविताओं के मध्यकालीन मराठी से अंग्रेज़ी में अनुवाद 'Says Tuka के लिए भी साहित्य अकादेमी पुरस्कार। देश-विदेश में कई पुरस्कार और सम्मान। कई वर्षों तक भारत भवन से सम्बद्ध रहे। हिन्दी फ़िल्म 'विजेता' के लिए पटकथा और संवाद लेखन, 'गोदाम का निर्देशन, फिल्म 'अर्धसत्य' की कविता 'अर्धसत्य' के कवि, अनेक विज्ञापन फ़िल्मों तथा डॉक्युमेंटरी फ़िल्मों का निर्माण जिनमें 'दत्त', 'ट्रिस्ट विद डेस्टिनी', क्वेश्चन ऑफ़ आइडेंटिटी आदि मुख्य। इसके अलावा शमशेर बहादुर सिंह, शक्ति चट्टोपाध्याय, के. सच्चिदानन्दन, कुँवर नारायण, नारायण सुर्वे और बी. सी. सान्याल पर भी डॉक्युमेंटरी फिल्मों का निर्माण तथा निर्देशन। देश-विदेशों में चित्रों की अनेक प्रदर्शनियाँ लगीं और कई स्थानों पर उनके चित्र संग्रहित हैं। लघु पत्रिकाओं के आन्दोलन के प्रवर्तकों में से एक। 'शब्द' (1954-1960) तथा 'द न्यू क्वेस्ट' (1978-80 और फिर 2001 से जीवन के अन्त तक) त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिकाओं का सम्पादन। दुनिया भर की अनेक भाषाओं में उनके लेखन के अनुवाद छप चुके हैं। हिन्दी भाषा और साहित्य में समान रूप से स्वीकृत और सम्मानित। तुषार धवल समकालीन हिन्दी कविता के एक महत्त्वपूर्ण स्वर हैं। चित्रकार हैं, फ़ोटोग्राफ़ी करते हैं और अभिनय भी। अब तक उनकी कविताओं के दो संग्रह प्रकाशित हैं, पहर यह बेपहर का (2009) और ये आवाज़ें कुछ कहती हैं (2014)। उनकी कविताओं का अनुवाद लगभग सभी भारतीय भाषाओं, अंग्रेज़ी, स्पैनिश आदि में हो चुका है। एक अनुवादक के तौर पर यह पहला और अब तक सबसे बड़ा प्रकल्प है। इसके अलावा समकालीन यूरोपीय कवियों, समकालीन युवा भारतीय अंग्रेज़ी और कश्मीरी कवियों की कविताओं का तथा सिमॉन द बोउवा और फ्रैंज़ काफ़्का के लेखों का अनुवाद कर चुके हैं। सम्प्रति भारतीय राजस्व सेवा में आयकर आयुक्त के पद पर कोलकाता में कार्यरत।