महाकवि पुष्पदन्त विरचित महापुराण (भाग-3)
महापुराण
अपभ्रंश भाषा में निबद्ध महापुराण या त्रिषष्ठि- महापुरुषगुणालंकार महाकवि पुष्पदन्त के तीन ज्ञात काव्य-ग्रन्थों में सबसे प्राचीन और विशाल है। महाकवि के अन्य दो काव्य है- णायकुमारचरिउ और जसहरचरिउ, जो डॉ. हीरालाल जैन द्वारा सम्पादित होकर हिन्दी अनुवाद और विस्तृत प्रस्तावना के साथ भारतीय ज्ञानपीठ से ही प्रकाशित हैं।
यह महाकाव्य दसवीं शताब्दी की भारतीय संस्कृति का सर्वांगीण प्रतिविम्बन करनेवाला एक स्वच्छ दर्पण है। इसमें एक ओर जहाँ रागचेतना के बन्धनों से जूझते हुए चरित्रों की अवतारणा है, वहीं प्रकृति और मानव-स्वभाव के तुलना-चित्र, अनुभूति और कल्पना, धर्म और जीवन तथा काव्य और शास्त्र का सुन्दर समन्वय भी बन पड़ा है।
हैदराबाद (दक्षिण भारत) के निकट राष्ट्रकूटों की राजधानी मान्यखेट (मलखेड़) में रहकर, अपभ्रंश भाषा में यह महाकाव्य लिखकर महाकवि पुष्पदन्त ने सिद्ध कर दिया कि कवि की प्रतिभा क्षेत्रीय और भाषागत विवशताएँ नहीं मानती। उसकी अनुभूति और संवेदना सम्पूर्ण मानवता की अनुभूति और संवेदना है।
पाँच भागों में प्रकाशित इस ग्रन्थ के प्रथम और द्वितीय भाग में तीर्थकर आदिनाथ का चरित (पूर्वार्ध, उत्तरार्ध), तृतीय भाग में तीर्थंकर अजितनाथ से मल्लिनाथ तक, चतुर्थ भाग में तीर्थकर मुनिसुव्रत एवं नमि तथा पाँचवें भाग में अन्तिम तीन तीर्थकर नेमि, पार्श्व एवं वर्धमान महावीर का जीवन-चरित (उनके समकालीन अन्यान्य शलाकापुरुषों के जीवन-चरित सहित) वर्णित हैं।
डॉ. पी. एल. वैद्य द्वारा सम्पादित और डॉ. देवेन्द्र कुमार जैन, इन्दौर द्वारा सरल हिन्दी अनुवाद एवं प्रस्तावना के साथ प्रकाशित है प्रस्तुत ग्रन्थ का नया संस्करण।
Publication | Bharatiya Jnanpith |
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