महावीर : युग और जीवन-दर्शन
महावीर
भारतीय ज्ञानपीठ को इस बात का गर्व है कि उसके द्वारा भगवान् महावीर के परम - पावन 2500वें निर्वाण महोत्सव के अवसर पर इस पुस्तक 'महावीर : युग और जीवन-दर्शन का प्रकाशम हो रहा है। कृतिकार हैं-भारतीय विद्या और जैन-विद्याओं के पारंगत विद्वान (स्व.) डॉ. हीरालाल जैन तथा डॉ. आ. ने. उपाध्ये। वास्तव में इस पुस्तक में दो रचनाओं का संपादित रूप सम्मिलित है : एक निबन्ध है-स्व. डॉ. हीरालाल जैन का, जिसे उन्होंने वीरशिणिदत्चरिउ की प्रस्तावना के रूप में लिखा था; और दूसरा एक व्याख्यान का हिन्दी अनुवाद है, जिसे डॉ. उपाध्ये ने इण्डियन इंस्टीट्यूट आफ कल्चर, बेंगलोर के तत्त्वावधान में विशिष्ट श्रोताओं के सामने प्रस्तुत किया था। यद्यपि वे दोनों रचनाएँ अलग-अलग ढंग से लिखी और परिकल्पित की गयी है, फिर भी दोनों संयुक्त रूप में एक सुन्दर और उपयोगी इकाई का आकार ले लेती है; क्योंकि पुस्तक में इसके शीर्षक से ध्वनित भगवान् महावीर से सम्बन्धित सभी पक्षों पर सारगर्भित विचार किया गया है। सुक्ष्मदृष्टि पाठक को अवश्य लगेगा कि कहीं-कहीं कुछ पुनरावृत्ति हुई है। इस पुस्तक के निर्माण की परिस्थिति में ऐसा होना स्वाभाविक है।
बहुत समय से भगवान् महावीर के विषय में एक ऐसी पुस्तक की आवश्यकता थी जो उनके सम्बन्ध के सभी विषयों को समाहित कर ले और इतनी कठिन भी न हो कि सामान्य पाठक की समझ से बाहर हो जाय। अब तक प्रकाशित पुस्तकों में यह पुस्तक इसी ढंग की लगती है। पुस्तक की विशेषता यह है कि इसमें भगवान् महावीर के जीवन सम्बन्धी पक्षों का चित्रण इस प्रकार किया गया है कि कोई सम्प्रदाय भेद उभरकर कर सामने न आये। महावीर युगीन समस्याओं का चित्रण इस प्रकार हो कि बुद्ध की समसामयिकता भी इस सन्दर्भ में आ जाय कि उनके सामने भी क्या सामाजिक समस्याएँ थी, और भगवान् महावीर के जीवन-दर्शन के वे सब पक्ष उजागर हो जो उनके युग की पीढ़ी और आज की पीढ़ी की समस्याओं से जुड़े हैं। लेखकों की बौद्धिक प्रामाणिकता अक्षुण्ण रहे और श्रद्धालु पाठकों के लिए भी जीवनी स्वीकार्य हो, यह उपलब्धि बहुत महत्वपूर्ण है।
सम्भवतया यह पुस्तक प्रकाश में न आती; यदि भारतीय ज्ञानपीठ के संस्थापक-न्यासघारी श्री साहू शान्तिप्रसाद जी ने यह अनुभव न किया होता कि भगवान् महावीर 2500 वां निर्वाण महोत्सव-महासमिति के तत्त्वावधान में प्रकाशनार्थ प्रस्तावित महावीर जीवनी के सम्बन्ध में अभी समाधान सघ नहीं पाया है, क्योंकि जीवनी के उसके विषय में प्राप्त आधारभूत सामग्री तथा तात्पर्य बोध में विविधता है। अतः इस बीच इस तरह की पुस्तक का प्रकाशन बहुत हद तक आवश्यकता की पूर्ति कर सकेगा। इसलिए भी कि अनुभवी विद्वान् और लेखकों ने इस पुस्तिका में ऐतिहासिक दृष्टि की प्रामाणिकता को बनाये रखने का प्रयास किया है।
मुझे इसमें सन्देह नहीं है कि यह पुस्तक, यद्यपि छोटी है, बहुत समय से चली आयी मांग की पूर्ति करेगी और एक मित्र की भाँति उन सबका मार्गदर्शन करेगी जो भगवान् महावीर के अमर जीवन और उनके सन्देश को स्वयं समझना चाहते हैं तथा अपार जन-समुदाय तक पहुंचाना चाहते हैं।
लक्ष्मीचन्द्र जैन
भारतीय ज्ञानपीठ
Publication | Bharatiya Jnanpith |
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