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मैं रानी सु प्यार दे

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मैं रानी सुप्यार दे - 
प्रस्तुत उपन्यास 'स्त्री अग्नि है' राणा कुम्भा -काल की स्त्री 'सुप्यार दे' की अपनी कहानी है। ऐतिहासिक सन्दर्भ अपनी वास्तविकता में हैं पर यह आत्मकथात्मक कृति मन की कथा-व्यथा ही है। मन में उद्वेलित विचारों की कथा है। यह नारी अस्मिता, उसके विद्रोह, उसकी विसंगतियाँ- विडम्बनाएँ, उसके अन्तर्द्वन्द्व की एक उत्तेजक कृति है। इसमें मानवीय संवेदना और करुणा का सांगोपांग चित्रण है और आज के पृथ्वी के सबसे बड़े संकट 'युद्ध' के विरोध में मार्मिक प्रसंग हैं। लगता है-छोटी जगहों के युद्धों की विभीषिकाएँ - समस्त पृथ्वी की हों। इसमें इतिहास कम है और मनुष्य अधिक।
सामन्ती संस्कृति के यथार्थ को प्रकट करने वाला यह उपन्यास अपने राजस्थानी परिवेश, लोक कथाओं के प्रभाव, भाषा और अभिव्यक्ति के कारण अपनी रोचकता का माधुर्य बिखेरता है।
लेखक हैं- साहित्य अकादेमी, फणीश्वरनाथ रेणु, मीरा आदि अनेक पुरस्कारों से सम्मानित और समस्त पाठक वर्ग में प्रिय यादवेन्द्र शर्मा 'चन्द्र'। -प्रकाशक

'मैं रानी सुप्यार दे' हिन्दी व राजस्थानी के प्रसिद्ध लेखक यादवेन्द्र शर्मा 'चन्द्र' का नया ऐतिहासिक उपन्यास है जो इतिहास की छद्म घटनाओं, स्थितियों व चरित्रों को चित्रित करता हुआ एक नये सत्य का दर्शन कराता है। चन्द्र ने इतिहास को सतही युद्ध-वर्णनों और तिथियों के आँकड़ों की दृष्टि से नहीं देखा है बल्कि उसने हर पात्र की तत्कालीन मनःस्थितियों को सूक्ष्मता से विश्लेषित किया है तथा पदों के आवरण में निहित उस मनुष्य की तलाश की है जो अपनी सबलताओं, दुर्बलताओं व संवेदनशीलता के कारण पाठकों को द्रवित कर देता है। विख्यात ऐतिहासिक उपन्यासकार श्री वृन्दावन लाल वर्मा की 'मृगनयनी' के भाँति इस उपन्यास में नरवद राठौड़ व सुप्यार दे की प्रेम कथा तो है ही साथ ही तत्कालीन राजतन्त्र व सामन्तशाही में 'स्त्री' की क्या दशा थी, उसका कितना भयानक शोषण होता था और कैसा उसका दोहन होता था, इसका सटीक वर्णन है। एक और विशेषता है कि उस काल के सम्भावित सत्यों का समावेश करके लेखक ने इसे अत्यन्त ही रोचक बना दिया है। अत्यन्त मौलिक दृष्टि से लिखा यह उपन्यास दैनिक सन्मार्ग कलकत्ता में धारावाहिक छपकर अत्यन्त लोकप्रिय व प्रशंसित हुआ है। आप भी पढ़कर आत्ममुग्ध होंगे, ऐसा मेरा पूरा विश्वास है।
-डॉ. नरेन्द्र चतुर्वेदी (कवि व आलोचक)

एक वर्ग हिन्दी कथा संसार में अपने अंचलों की गन्ध लेकर आया जिसने अपनी प्रतिभा एवं ऊर्जा के बल पर स्वीकृति प्राप्त की है। उनमें रेणु, यादवेन्द्र शर्मा 'चन्द्र' और शैलेष इटियानी प्रमुख नाम हैं।
-राजेन्द्र यादव

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9788170558149
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Vani Prakashan
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यादवेन्द्र शर्मा ‘चन्द्र (Yadvendra Sharma 'Chandra')

यादवेन्द्र शर्मा 'चन्द्र' - 
पुरस्कार : साहित्य अकादेमी, फणीश्वरनाथ रेणु, मीरा, राजस्थान साहित्य अकादमी, राजस्थानी भाषा सा. एवं सं. अकादमी, राजस्थान पत्रिका कहानी पुरस्कार, झाबरमल्ल शर्मा सम्मान व अनेक पुरस्कार।
सम्मान : साहित्य महोपाध्याय, विद्यावाचस्पति, साहित्य श्री साहित्य मनीषी, डॉ. राहुल सांकृत्यायन, आदि अनेक सम्मान।
शोध अनेक विश्वविद्यालयों से आठ शोध व अनेक लघु शोध।
प्रमुख कृतियाँ: संन्यासी और सुन्दरी, दीया जला दीया बुझा, एक और मुख्यमंत्री, जनानी ड्योढ़ी, प्रजाराम, हजार घोड़ों का सवार, ढोलन कुंजकली, खम्मा अन्नदाता, खून का टीका, में रानी सुप्यारदे, मरुकेसरी, कुर्सी गायब हो गयी, लगभग साठ उपन्यास।
इक्यावन कहानियाँ, मेरी प्रिय कहानियाँ, चर्चित कहानियाँ, दस प्रतिनिधि कहानियाँ, तेरह कहानियाँ, विशिष्ट कहानियाँ, तपता समन्दर लगभग 17 कहानी संग्रह।
मैं अश्वत्थामा, चार अजूबे, जीमूतवाहन, चुप हो जाओ पीटर, तीन नाटक, आखिरी मंजिल, आदि नाटक। तेरा मेरा उसका सच (कविता संग्रह)।
हूँ गोरी किण पींवरी, चाँदा सेठाणी, जमारो, जोग-संजोग, समंद अर थार, राजस्थानी रचनाएँ।

गुल/बड़ी, विडम्बना, चकवे-चकवी की बात (टेलीफ़िल्में)।
- लाज राखौ राणी सती (पहली राजस्थानी रंगीन फ़िल्म)।

 

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