'मेरी आँखों के आगे एक बहुत महीन धागों का बुना जाल सा बिछ गया-एक-एक करके कितने ही चेहरे उस जाल में उलझते गुलझते जाते । गुस्से से लाल माँ की सूरत, गर्हणा से सिकुड़ा पिता जी का तेवर! दीदी की भर्त्सना । अजय का सहानुभूतिमय जिज्ञासु पर ख़ामोश चेहरा । क्या मैं कभी किसी को माफ नहीं कर सकी! और एकबारगी ही मैंने अपने आप से कहा- अब मैंने यह नाता तोड़ा ।'... यह मैंने नाता तोड़ा उपन्यास की नायिका रितु का आत्मस्वीकार है। एक भरे पूरे घर में रहनेवाली रितु के साथ किशोरावस्था में हुई 'दुर्घटना' ने उसके पूरे अस्तित्व को जैसे भंग कर दिया। वर्जनाओं, चुप्पियों और संकेतों की जटिल दुनिया में बड़ी होते-होते रितु जाने कैसे-कैसे कच्चे-पक्के धागों में उलझती गयी। भारत से अमरीका जाने के बाद भी रितु की ये उलझनें कम नहीं हुईं। अपने प्रेमी पति के साथ अभिशप्त अतीत से आंशिक मुक्ति का वर्णन अत्यन्त मार्मिक है। सुषम बेदी का यह उपन्यास नारी मन की उखाड़पछाड़ का प्रभावी चित्रण है। रिश्तों और परिस्थितियों के बवंडर में कभी सूखे पत्ते सा उड़ता जीवन और कभी अपनी जड़ों से जुड़ता जीवन-जीवन के दोनों पक्षों का सटीक वर्णन सुषम बेदी ने किया है।
मैंने नाता तोड़ा वस्तुतः नातों-रिश्तों को यथार्थ के प्रकाश में देखने का उपक्रम है।
"सुषम बेदी -
जन्म : 1 जुलाई 1945, फिरोज़पुर, पंजाब ।
इन्द्रप्रस्थ कॉलेज, दिल्ली से बी.ए. (1964), एम.ए. (1966) और दिल्ली यूनिवर्सिटी से एम.फ़िल (1968) तथा पंजाब यूनिवर्सिटी से पीएच.डी. (1979) । कमला नेहरू कॉलेज, दिल्ली और पंजाब यूनिवर्सिटी में अध्यापन के बाद सन् 1985 से कोलंबिया यूनिवर्सिटी, न्यूयार्क में हिन्दी की प्रोफेसर रहीं। नाटक और भाषा पर शोधकार्य किया।
पहला उपन्यास हवन 1989 में प्रकाशित, जो उर्दू में लाहौर से तथा अंग्रेज़ी में Heinemann, England से 1993 में प्रकाशित हुआ ।
हवन (1989, 1992), लौटना (1992), इतर (1995), गाथा अमर बेल की (2000), नवाभूम की रस-कथा (2002), क़तरा-दर-क़तरा (1994) (उपन्यास); चिड़िया और चील (1995) (कहानी-संग्रह); शब्दों की खिड़कियाँ (2006) (कविता-संग्रह)।
कहानियों, उपन्यासों और कविताओं का विभिन्न भाषाओं-अंग्रेज़ी, फ्रेंच, डच, बांगला, उड़िया, असमी, पंजाबी और उर्दू में अनुवाद प्रकाशित। अंग्रेज़ी में भी लेख लिखे जो अमेरिका, इंग्लैंड और भारत की विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए।
निधन : 20 मार्च 2020"