मैत्रेय जातक - गौतमबुद्ध की समकालीन भारतभूमि के प्रेक्षापट्ट पर रचित यह बृहद् उपन्यास एक ही साथ ऐतिहासिक एवं समयातीत मानव प्रवाह का धारक है। दो खण्डों में विन्यस्त इस उपन्यास की कथावस्तु का केन्द्र बिन्दु बौद्धजातक है। उपन्यास में भिन्न-भिन्न स्तरों में उन्मोचित होती विभिन्न गाथाएँ– संघात एवं सम्प्रसारण में, विन्यास एवं पुनर्विन्यास में, आवेश एवं आकांक्षा में दीपालोक की भाँति कभी कम्पित होती हैं, तो कभी स्थिर रहती हैं। कहानी के केन्द्र में स्वयं तथागत बोधिसत्व हैं और हैं—लोकविश्रुत सम्राट और समाज के निम्नवर्गीय व्रात्य-पतित जन। चरित्र चित्रण में लेखिका ने प्रस्तुत उपन्यास 'मैत्रेय जातक' में प्राचीन जन-जीवन का अतिक्रम करके आधुनिक जीवन के अन्तर्लोक को स्पर्श किया है। भाषा एवं कथा प्रस्तुति में सफल वाणी बसु की यह कृति मनुष्य के शाश्वत जीवनचर्या का अविस्मरणीय स्मारक है।
"वाणी बसु - जन्म: 11 मार्च, 1949।शिक्षा: स्कॉटिश चर्च कॉलेज से बी.ए. (अंग्रेज़ी ऑनर्स) तथा 1962 में कोलकाता विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए.।विजयकृष्ण गर्ल्स कॉलेज, हावड़ा में अध्यापन। छात्रावास से ही कविता, कहानी, आलेख लेखन, अनुवाद में संलग्न हैं। ‘श्री अरविन्देर सनेटगुच्छो (श्रृंवन्तु) ’ 'समरसेट ममेर सेरा प्रेमेर गल्प' (1984) एवं 'डी.एच. लारेन्सर सेरा गल्प' (1987)। पहली कहानी सन् 1981 में बांग्ला की प्रतिष्ठित पत्रिका 'आनन्दमेला' एवं 'देश' में प्रकाशित हुई थी। 'जन्मभूमि मातृभूमि' प्रथम प्रकाशित उपन्यास (1987) ।पुरस्कार: ताराशंकर पुरस्कार (1991), साहित्य सेतु पुरस्कार, सुशीला देवी बिड़ला स्मृति पुरस्कार (1995), 'मैत्रेय जातक’ के लिए बांग्ला भाषा का प्रतिष्ठित 'आनन्द पुरस्कार’, बंकिम पुरस्कार एवं शिरोमणि पुरस्कार (1998), उपन्यास 'खना-मिहिरेर ढीपी' के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार (2010)।