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मानुष गन्ध

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"लगभग दो दशकों से अनुपलब्ध रहा सूर्यबाला का यह कथा संग्रह उनकी आधी सदी की कथायात्रा का एक कोलाज कहा जा सकता है। अपनी जिस तरल संवेदना और विविधवर्णी रचनाशीलता के लिए सूर्यबाला की कहानियाँ जानी जाती हैं, उनका प्रभूत इस संग्रह में उपलब्ध है। रोज़मर्रा के आम जीवन के किस झरोखे से झाँक कर उनकी कलम विरल कथारस की सृष्टि कर देगी, इसकी अनूठी मिसाल उनकी क्रॉसिंग और तिलिस्म जैसी कहानियाँ हैं। एक तरफ वंचित और निरुपाय बैजनाथ की मर्मकथा भुक्खड़ की आलाद है तो दूसरी तरफ स्त्री-अस्मिता की अपनी अलग मिसाल पेश करती पूर्णाहुति... दंगों की ऊपरी भयावहता से भी कहीं ज़्यादा कमाल साहब की अपनी पहचान गँवा देने की वेबसी है (शहर की सबसे दर्दनाक खबर) तो देश की प्रतिभाओं के विदेशगमन वाले मसले पर होने वाले हाहाकारी क्रन्दन का जवाब वे अपने ही देश में हो रहे मेधावी युवाओं के निरंकुश दोहन का मार्मिक आख्यान मानुष-गन्ध रच कर देती हैं और इन सबसे ध्रुवान्त भिन्न, क्या मालूम जैसी कहानी... उनकी अबोध, अनछुई प्रेम कहानियों का एक परिचय-पत्र-सा थमाती, इस संग्रह में शामिल है। कुछ ऐसा लगता है जैसे लेखन में चलने वाले ट्रेंड, फैशन और गहमागहमियों से सूर्यबाला को परहेज-सा है। लेकिन इसका अर्थ, समय की तल्ख सच्चाइयों से मुकरना या उन्हें नकारना हर्गिज नहीं है। अपनी कहानियों के कैनवस पर, 'लाउड' और अतिमुखर रंग-रेखाओं के प्रयोग से भी बचती हैं वे। उनके पात्रों के विरोध और संघर्ष मात्र विध्वंसक न होकर विश्वसनीय और विवेकसम्मत होने पर ज्यादा जोर देते हैं। सिद्धान्तों, वादों और आन्दोलनों के ऊपरी घटाटोपों से भी बचती सूर्यबाला अपने कथ्य और शिल्प के पुराने प्रतिमानों को स्वयं ही तोड़ती और नये ढांचे गढ़ने में विश्वास करती हैं। "
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9789355181855
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सूर्यबाला (Suryabala)

"सूर्यबाला : 25 अक्टूबर, 1943 को वाराणसी में जन्मी और काशी विश्वविद्यालय में पीएच.डी. तक की शिक्षा पूर्ण करने वाली सूर्यबाला समकालीन कथा-लेखन में एक विशिष्ट और अलग अन्दाज़ के साथ उपस्थित हैं। यह अन्दाज़ मर्मज्ञ पाठकों के साथ उनकी आत्मीयता का है, जो दशक -दर- दशक निरन्तर प्रगाढ़ होती गयी है। 'धर्मयुग' में धारावाहिक प्रकाशित होने वाला उनका पहला उपन्यास मेरे सन्धिपत्र आज भी पाठकों की चहेती कृति है तथा अब तक का अन्तिम उपन्यास कौन देस को वासी... वेणु की डायरी अनवरत पाठकों की सराहना अर्जित कर रहा है। अपने छह उपन्यास, ग्यारह कथा-संग्रह, चार व्यंग्य-संग्रह तथा अलविदा अन्ना जैसी स्मृति-कथा और झगड़ा निपटारक दफ़्तर शीर्षक बाल हास्य उपन्यास की लेखिका सूर्यबाला तमाम साहित्यिक उठा-पटकों, विमर्शी घमासानों और बाज़ार की माँगों से निर्लिप्त रहकर चुपचाप लिखने वाली रचनाकार हैं। वैचारिक गहनता के बीचोबीच सहज संवेदना की पगडण्डी बना ले जाने में सूर्यबाला की कहानियाँ बेजोड़ हैं। जीवन के जटिल और बौद्धिक पक्षों को भी नितान्त खिलन्दड़े अन्दाज़ में बयान करती उनकी कहानियाँ अपनी मार्मिकता पर भी आँच नहीं आने देतीं । उपन्यास : ‘मेरे सन्धिपत्र’, ‘सुबह के इन्तज़ार तक’, ‘अग्निपंखी’, ‘दीक्षान्त’, ‘यामिनी कथा’ तथा ‘कौन देस को वासी... वेणु की डायरी’। कहानी-संग्रह : ‘बहनों का जलसा’, ‘एक इन्द्रधनुष जुबेदा के नाम’, ‘दिशाहीन’, ‘थाली भर चाँद’, ‘मुँडेर पर’, ‘गृहप्रवेश’, ‘साँझवाती’, ‘कात्यायनी संवाद’, ‘इक्कीस कहानियाँ’, ‘पाँच लम्बी कहानियाँ’, ‘मानुष-गन्ध’, ‘गौरा गुनवन्ती’, ‘छूटे हुए पृष्ठ’। व्यंग्य : ‘अजगर करे न चाकरी’, ‘धृतराष्ट्र टाइम्स’, ‘देश सेवा के अखाड़े में’, ‘भगवान ने कहा था’, ‘पत्नी और पुरस्कार’, ‘मेरी प्रिय व्यंग्य रचनाएँ’, ‘यह व्यंग्य कौ पन्थ’। संस्मरण : ‘अलविदा अन्ना’ (स्मृति-कथा), ‘बाल हास्य’ उपन्यास : ‘झगड़ा निपटारक दफ़्तर’। अंग्रेज़ी में अनूदित कथा-संग्रह : ‘द गर्ल विद अनशेड टियर्स’। अनेक कहानियों एवं व्यंग्य रचनाओं का रूपान्तर टी.वी. धारावाहिकों के माध्यम से प्रस्तुत। एक वर्ष तक 'जनसत्ता' के साप्ताहिक परिशिष्ट में 'वामा' शीर्षक से पाक्षिक स्तम्भ का लेखन। 'इंडियन क्लासिक' शृंखला (प्रसार भारती) के अन्तर्गत 2007 में 'सज़ायाफ़्ता' कहानी पर बनी टेलीफ़िल्म को दो पुरस्कार (सर्वश्रेष्ठ टेलीफ़िल्म एवं निर्देशन), जीवन्ती फ़ाउंडेशन (मुम्बई), सूत्रधार (इन्दौर) तथा राइटर्स एसोसिएशन, मुम्बई द्वारा लेखिका सूर्यबाला के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केन्द्रित सम्पूर्ण कार्यक्रम एवं साक्षात्कार। सम्मान/पुरस्कार : महाराष्ट्र साहित्य अकादमी का 'छत्रपति शिवाजी राष्ट्रीय एकता पुरस्कार', भारतीय प्रसार परिषद् का ‘भारतीय गौरव सम्मान', महाराष्ट्र साहित्य हिन्दी अकादमी का 'सर्वोच्च जीवन गौरव पुरस्कार', ‘हरिवंशराय बच्चन साहित्य रत्न पुरस्कार', 'राष्ट्रीय शरद जोशी प्रतिष्ठा पुरस्कार', 'रवीन्द्रनाथ त्यागी शीर्ष सम्मान', अभियान संस्था द्वारा 'स्त्री शक्ति सम्मान' एवं महाराष्ट्र दिवस पर राज्यपाल द्वारा राजभवन में सम्मानित, ‘जे.सी. जोशी शब्द साधक शिखर सम्मान', 'नयी धारा' का 'उदयराज सिंह स्मृति शीर्ष सम्मान', उत्तर प्रदेश संस्थान का ‘सर्वोच्च भारत-भारती पुरस्कार' तथा के. के. बिडला फ़ाउंडेशन का 'व्यास सम्मान' आदि से सम्मानित । "

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