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Bharatiya Jnanpith

मौनी

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मौनी - 
अड़तीस वर्ष की आयु में जब अनन्तमूर्ति का पाँच वर्ष पहले लिखा हुआ उपन्यास 'संस्कार' फ़िल्म के माध्यम से जनता के सामने आया तो वह रातों-रात प्रसिद्धि के शिखर पर पहुँच गये। वैसे उनका लेखन बहुत पहले ही आरम्भ हो गया था।
तेईस वर्ष की अवस्था में उनका पहला कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ। तब से उनके चार और संग्रह निकल चुके हैं, जिन्होंने कन्नड़ साहित्य में उन्हें विशिष्ट स्थान दिलाया है। अनन्तमूर्ति ने कहानी को आज के परिवेश में समाज के परम्परागत मूल्यों को परखने का माध्यम बनाया है। वाद-विवाद की तकनीक अपनाते हुए उन्होंने ऐसे पात्रों का सृजन किया है जो परम्पर विरोधी मूल्यों के मापदण्डों का प्रतिनिधित्व करते हैं। अनन्तमूर्ति की कहानियों में उनकी बौद्धिकता पूरी तरह झलकती है लेकिन उनका उद्देश्य और गहनता उनके लेखन को विशेष रूप से समृद्ध करते हैं। अपनी कहानियों में उन्होंने अपने बचपन और कैशोर्य के भरे-पूरे अनुभव का प्रयोग किया है।
प्रस्तुत कहानी-संग्रह में उनकी ऐसी ही बारह कहानियों का संकलन है। आशा है हिन्दी पाठक जगत् के लिए ये कहानियाँ एक नया आयाम देंगी।

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9789326352611
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Bharatiya Jnanpith
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यू. आर. अनन्तमूर्ति (U. R. Ananthamoorthi)

"यू. आर. अनंतमूर्ति कर्नाटक के शिमोगा जिले के तीर्थतल्ली नगर में 1932 में उनमें अनंतमूर्ति कन्नड़ के ख्यातिप्राप्त उपन्यासकार एवं कहानीकार हैं। मैसूर विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद 1956 से वहीं पर अँग्रेज़ी विभाग में अध्यापन कार्य आरम्भ किया। बाद में बर्मिघम यूनिवर्सिटी (यू.के.) से पी-एच.डी. की उपाधि पायी। 1980 में मैसूर विश्वविद्यालय के अँग्रेज़ी के प्रोफेसर, 1982 में शिवाजी विश्वविद्यालय के तथा 1985 में लोवा (Lowa) विश्वविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर रहे। 1987 में महात्मा गाँधी विश्वविद्यालय कोट्टयम के उपकुलपति पद पर कार्यरत । अनंतमूर्ति की अब तक लगभग 20 कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें 'संस्कार', 'भारतीपुर', 'अवस्थे' तीन उपन्यास; 'एन्देन्दु मुगियद कथे', 'प्रश्ने', 'एरदु दशकाड कथेगलु' आदि पाँच कथा-संग्रह; 'बावली', 'अज्जन हेगल मेलिन सुक्कुगलु' आदि तीन काव्य-रचनाएँ; ‘अवहने' नाटक; 'प्रज्ञे मत्तु परिसर' आदि पाँच समीक्षा ग्रन्थ प्रमुख हैं। संघर्षपूर्ण ग्रामीण जीवन पर आधारित उनका उपन्यास 'संस्कार' विभिन्न भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त फ्रेंच, रशन, जर्मन, बुलगेरियन और अँग्रेज़ी आदि विश्व की प्रमुख भाषाओं में भी अनूदित हो चुका है । 1970 में इस पर आधारित कन्नड़ फ़िल्म कथानक की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ घोषित हुई ।

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