मेरा दगिस्तान (2 वॉल्यूम सेट)
मेरा दाग़िस्तान -
दाग़िस्तानी पहाड़ों की गहराई में, विस्तृत वन-प्रांगण के छोर पर त्सादा नामक एक अवार पहाड़ी गाँव है। इस गाँव में एक घर है, जो अपने दायें-बायें के पड़ोसी घरों से किसी प्रकार भिन्न नहीं है। उसकी वैसी ही समतल छत है, छत पर वैसा ही छत को समतल करने के लिए पत्थर का रोलर है, वैसा ही फाटक है और वैसा ही छोटा-सा आँगन है। मगर इसी छोटे-से पहाड़ी घर, इसी कठोर, यानी पाषाणी नीड़ से दो कवियों के नाम उड़ कर संसार में बहुत दूर-दूर तक जा पहुँचे। पहला नाम है दागिस्तान के जन-कवि हमज़ात सा का और दूसरा दाग़िस्तान के जन-कवि रसूल हमज़ातोव का।
इसमें आश्चर्य की तो कोई बात नहीं कि बुज़ुर्ग पहाड़ी कवि के परिवार में पनपते हुए लड़के को कविता से प्यार हो गया और वह ख़ुद भी कविता रचने लगा। मगर कवि बन जानेवाले कवि के बेटे ने अपनी ख्याति की सीमा बहुत दूर-दूर तक फैला दी। बुज़ुर्ग हमज़ात ने अपने जीवन में जो सबसे लम्बी यात्रा की, वह थी दाग़िस्तान से मॉस्को तक। मगर रसूल हमजातोव, जो बहुजातीय सोवियत संस्कृति के प्रमुख प्रतिनिधि हैं, दुनिया के लगभग सभी के देशों में हो आये हैं।
पुस्तक आत्म-कथात्मक है। कहीं-कहीं तो वह आत्म स्वीकृति का रूप ले लेती है। उसमें निश्छलता है, काव्यात्मक सरसता है। इसमें जहाँ-तहाँ लेखक का प्यारा प्यारा, विनोद-भरा, शरारतीपन बिखरा हुआ है। संक्षेप में, वह बिल्कुल वैसी ही है, जैसा उसका लेखक। इस पुस्तक के बारे में केन्द्रीय समाचार पत्र में प्रकाशित एक लेख में बहुत उचित ही 'जीवन की प्रस्तावना' शीर्षक दिया गया था।
'मेरा दाग़िस्तान' पुस्तक में पाठक को अनेक अवार कहावतें और मुहावरे मिलेंगे, ख़ुशी से उमगते या ग़म में डूबे हुए बहुत से ऐसे क़िस्से मिलेंगे, जिनका लेखक को या तो स्वयं अनुभव हुआ, या जो जन-स्मृति के भण्डार में सुरक्षित हैं, और इसी भाँति जीवन और कला के बारे में वे परिपक्व चिन्तन भी पा सकेंगे। इस किताब में भलाई की बहुत सी बातें हैं, जनसाधारण और मातृभूमि के प्रति प्रेम से ओत-प्रोत है यह।
पाठकों को सम्बोधित करते हुए रसूल हमज़ातोव ने अपने कृतित्व के बारे में यह लिखा है, "ऐसे भी लोग हैं, जिनकी अतीत-सम्बन्धी स्मृतियाँ बड़ी दुखद और कटु हैं। ऐसे लोग वर्तमान और भविष्य की भी इसी रूप में कल्पना करते हैं। ऐसे भी लोग हैं, जिनकी अतीत-सम्बन्धी स्मृतियाँ बड़ी मधुर और सुखद हैं। उनकी कल्पना में वर्तमान और भविष्य भी मधुर होते हैं। तीसरी क़िस्म के लोगों की स्मृतियाँ सुखद और दुखद, मधुर और कटु भी होती हैं। वर्तमान और भविष्य सम्बन्धी उनके विचारों में विभिन्न भावनाएँ, स्वर-लहरियाँ और रंग घुले-मिले रहते हैं। मैं ऐसे ही लोगों में से हैं।
'मेरी राहें हमेशा ही नहीं रहीं, हमेशा ही मेरे वर्ष चिन्तामुक्त नहीं रहे। मेरे समकालीन, तुम्हारी ही तरह मैं भी अपने युग की हलचल, दुनिया की उथल-पुथल और बड़ी महत्त्वपूर्ण घटनाओं के भँवर में रहा हूँ। हर ऐसी घटना लेखक के दिल को मानो झकझोर डालती है। लेखक किसी घटना की ख़ुशी और ग़म के प्रति उदासीन नहीं रह सकता। वे बर्फ़ पर उभरनेवाले पद-चिह्न नहीं, बल्कि पत्थर पर की गयी नक्काशी होते हैं। अब मैं अतीत के बारे में अपनी सारी जानकारी और भविष्य के बारे में अपने सभी ख़यालों को एक तार में पिरो कर तुम्हारे पास आ रहा हूँ, तुम्हारे दरवाज़े पर दस्तक देता हूँ और कहता हूँ मेरे अच्छे दोस्त, यह मैं हूँ। मुझे अन्दर आने दो।"
-ब्लादीमीर सोलोऊखिन
अन्तिम पृष्ठ आवरण -
"कविगण इसलिए पुस्तकें लिखते हैं कि लोगों को युग और अपने बारे में, आत्मा की हलचल के सम्बन्ध में बता सकें, उनको अपनी भावनाओं और विचारों से अवगत करा सकें। सम्भवतः कविगण ही संसार में सर्वाधिक उदार व्यक्ति हैं। वे लोगों को सबसे ज़्यादा मूल्यवान और वांछित चीज़ भेंट करते हैं। पुश्किन से लेकर त्वादोव्स्की तक, रूसी कवियों ने मुझे रूस, उसका इतिहास, उसका भाग्य और उसकी आत्मा भेंट की। शेव्वेन्को और रील्स्की ने सभी सुखों-दुखों के साथ मुझे उक्रइना भेंट किया। रुस्तावेली और लिओनीद्ज़े ने सभी कोमल भावनाओं तथा साहस की छवि के साथ मुझे जॉर्जिया के दर्शन कराये। मैं इसाक्यान का आभारी हूँ कि उन्होंने मुझको, अवार जाति के व्यक्ति को, सेवान झील और अरारात के हिम-मण्डित शिखर की छटा दिखायी। विभिन्न देशों, युगों, राष्ट्रों और जनगण के कवि स्पेन की धरती और आकाश, इटली की मधुर धुनें तथा रंग, भारत की प्रार्थनाएँ और प्रण, फ्रांस का सौन्दर्य एवं सत्य मेरे पहाड़ी घर में लाये... मेरे पूर्वजों, मेरी धरती के प्रबोधकों-गायकों की महान थाती के रूप में मुझे बहुत बड़ा ख़ज़ाना - मेरा दाग़िस्तान - मिला है।"
ये शब्द हैं सन् 1923 में दूर-दराज़ के त्सादा गाँव में जन्म लेनेवाले दाग़िस्तान के पहाड़ी जन-कवि रसूल हमज़ातोव के, जिन्होंने वहाँ की जनता की सारी सांस्कृतिक निधि को समाहित किया है।
'मेरा दाग़िस्तान' पाठकों की सेवा में प्रस्तुत किया जा रहा है। यह कवि द्वारा गद्य में लिखी गयी पुस्तक है। यह आत्मकथात्मक रचना है, सच्चे दिल से लिखी गयी है। यह लोगों के प्रति भलाई, उनके और मातृभूमि के प्रति प्यार की भावनाओं से ओत-प्रोत है।